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"गीत / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=कुमार मुकुल
 
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इक सितारा टिमटिमाता रहा सारी रात
 
  
वो सुलाता रहा और जगाता रहा
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जाने जीवन में क्यों हैं जंजाल इतने
  
पहलू में कभी, कभी आसमान पर
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दूर हो तुझ से बीतेंगे साल कितने
  
वह उनींदे की लोरी सुनाता रहा।
 
  
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काम हैं जितने उतने इलजाम भी हैं
  
इक ...
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फूटती सुबहें हैं तो ढलती शाम भी है
  
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भर छाती धँसकर जीता हूँ जीवन
  
रूप उसका समझ में क्‍या आए कभी
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कभी ये नियति देती उछाल भी हैं
  
रोशनी उसकी पल में आये-जाये कभी
 
  
खुशबू उसकी और उसके पैरहन
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जाने...
  
सपनों से नींद में आता जाता रहा।
 
  
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फैज इधर हैं उधर खय्याम भी हैं
  
इक ...
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लहरों पर पीठ टेके होता आराम भी है
  
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खट-खट कर कैसे राह बनाता हूँ थोड़ी
  
रंग उसका और उसकी आवाज क्‍या
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जानता हूँ आगे बैठा भूचाल भी है
  
लाऊं आखर में मैं उसके अंदाज क्‍या
 
  
रू-ब-रू उसके आंख खुलती नहीं
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जाने...
  
भोर तक उस पे नजरें टिकाता रहा।
 
  
  
इक ...
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'''(रचनाकाल :दिल्ली,1997)
 
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पलकों पे शबनम की बूंदें हैं अब
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और रंगत फलक की श्‍वेताभ है
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सूर्य आएगा इनको भी ले जाएगा
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मानी क्‍या मैं रोता या गाता रहा।
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इक ...
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''{1998- फैज के लिए }''
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19:34, 5 अगस्त 2008 के समय का अवतरण

जाने जीवन में क्यों हैं जंजाल इतने

दूर हो तुझ से बीतेंगे साल कितने


काम हैं जितने उतने इलजाम भी हैं

फूटती सुबहें हैं तो ढलती शाम भी है

भर छाती धँसकर जीता हूँ जीवन

कभी ये नियति देती उछाल भी हैं


जाने...


फैज इधर हैं उधर खय्याम भी हैं

लहरों पर पीठ टेके होता आराम भी है

खट-खट कर कैसे राह बनाता हूँ थोड़ी

जानता हूँ आगे बैठा भूचाल भी है


जाने...


(रचनाकाल :दिल्ली,1997)