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"तुम आई / रंजन कुमार झा" के अवतरणों में अंतर

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तुम आईं, गीतों ने जैसे फिर से मधुर शृंगार किया
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तुम्हें देख मेरे गीतों ने अपना है शृंगार किया  
मुग्ध नयन से कविताओं ने कवि को चूमा,प्यार किया
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तुम आईं तो मन-आँगन की महक उठी यह फुलवारी  
 
तुम आईं तो मन-आँगन की महक उठी यह फुलवारी  
गेहूँ-सरसों की खेतों की चहक उठी क्यारी-क्यारी  
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गेहूँ-सरसों के खेतों-सी झूम रही मन की क्यारी
ऋतु वसंत ने बौराए उन फूलों से अभिसार किया
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ऋतु वसंत आया जीवन में, खुशियों ने अभिसार किया
  
 
शब्दों को हैं प्राण मिल गए, मिली काव्य को है काया  
 
शब्दों को हैं प्राण मिल गए, मिली काव्य को है काया  
 
कलम हो रहे मतवाले, छंदों ने गान मधुर गाया  
 
कलम हो रहे मतवाले, छंदों ने गान मधुर गाया  
गजलों ने फिर सधे सुरों से जैसे रूप सँवार लिया
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मुग्ध नयन से कविताओं ने प्रिय! को चूमा,प्यार किया
  
 
तुम आईं जीने की आशा लिए हुए ज्यों आँचल में
 
तुम आईं जीने की आशा लिए हुए ज्यों आँचल में
 
जैसे काले मेघ बरसने आन पड़े हों मरुथल में  
 
जैसे काले मेघ बरसने आन पड़े हों मरुथल में  
खुशियों से भींगे दृग ने गालों को ही मझधार किया
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खुशियों से भींगी आँखों ने गालों को मझधार किया
 
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19:43, 1 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

तुम्हें देख मेरे गीतों ने अपना है शृंगार किया

तुम आईं तो मन-आँगन की महक उठी यह फुलवारी
गेहूँ-सरसों के खेतों-सी झूम रही मन की क्यारी
ऋतु वसंत आया जीवन में, खुशियों ने अभिसार किया

शब्दों को हैं प्राण मिल गए, मिली काव्य को है काया
कलम हो रहे मतवाले, छंदों ने गान मधुर गाया
मुग्ध नयन से कविताओं ने प्रिय! को चूमा,प्यार किया

तुम आईं जीने की आशा लिए हुए ज्यों आँचल में
जैसे काले मेघ बरसने आन पड़े हों मरुथल में
खुशियों से भींगी आँखों ने गालों को मझधार किया