भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"खड़े हैं लाखों / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | 34 | |
+ | कँटीली राहें | ||
+ | पथरीली चढ़ाई | ||
+ | हाथ थामना ! | ||
+ | 35 | ||
+ | '''खड़े हैं लाखों''' | ||
+ | रक्तपायी पथ में | ||
+ | बचके चलो ! | ||
+ | 36 | ||
+ | शंकित दृष्टि | ||
+ | बींधती तन-मन | ||
+ | दग्ध जीवन ! | ||
+ | 37 | ||
+ | भाग्य का लेखा | ||
+ | भला करके भी तो | ||
+ | सुख न देखा ! | ||
+ | 38 | ||
+ | तुम्हारी आँखें- | ||
+ | आँसू का समन्दर | ||
+ | पीना मैं चाहूँ। | ||
+ | 39 | ||
+ | पोंछ लो आँखें | ||
+ | सीने में छुप जाओ | ||
+ | क्रूर हैं घेरे । | ||
+ | 40 | ||
+ | यज्ञ रचाया | ||
+ | मन्त्र भी पढ़े सभी | ||
+ | शाप न छूटा। | ||
+ | 41 | ||
+ | जलती रही | ||
+ | समिधा बन नारी | ||
+ | राख ही बची । | ||
+ | 42 | ||
+ | छूटे तो छूटे | ||
+ | चाहे प्राण अपने ! | ||
+ | हाथ न छूटे। | ||
+ | 43 | ||
+ | सिन्धु तरेंगें | ||
+ | विश्वास की है नैया | ||
+ | पार करेंगे। | ||
</poem> | </poem> |
23:04, 5 मई 2019 के समय का अवतरण
34
कँटीली राहें
पथरीली चढ़ाई
हाथ थामना !
35
खड़े हैं लाखों
रक्तपायी पथ में
बचके चलो !
36
शंकित दृष्टि
बींधती तन-मन
दग्ध जीवन !
37
भाग्य का लेखा
भला करके भी तो
सुख न देखा !
38
तुम्हारी आँखें-
आँसू का समन्दर
पीना मैं चाहूँ।
39
पोंछ लो आँखें
सीने में छुप जाओ
क्रूर हैं घेरे ।
40
यज्ञ रचाया
मन्त्र भी पढ़े सभी
शाप न छूटा।
41
जलती रही
समिधा बन नारी
राख ही बची ।
42
छूटे तो छूटे
चाहे प्राण अपने !
हाथ न छूटे।
43
सिन्धु तरेंगें
विश्वास की है नैया
पार करेंगे।