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"कटे न पाश / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | अब बोझ -से भारी | ||
+ | चले भी आओ। | ||
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+ | कैसा मौसम! | ||
+ | झुलसी हैं ऋचाएँ | ||
+ | असुर हँसें। | ||
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+ | उर -पाँखुरी | ||
+ | झेले पाषाण -वर्षा | ||
+ | अस्तित्व मिटे। | ||
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+ | ईर्ष्या सर्पिणी | ||
+ | फुत्कारे अहर्निश | ||
+ | झुलसे मन। | ||
+ | 50 | ||
+ | कहाँ से लाएँ | ||
+ | चन्दनवन -मन ! | ||
+ | लपटें घेरे। | ||
+ | 51 | ||
+ | अश्रु से सींचे | ||
+ | महाकाव्य के पन्ने | ||
+ | रच दी नारी । | ||
+ | 52 | ||
+ | मन बाँचा | ||
+ | अन्धे असुर बने | ||
+ | रक्त -पिपासु । | ||
+ | 53 | ||
+ | दर्द जो पीते | ||
+ | व्यथित के मन का | ||
+ | सुधा न माँगे। | ||
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23:07, 5 मई 2019 के समय का अवतरण
44
मुस्कानें मरी
हँसी गले में फँसी
बधिक -पाश
45
कटे न पाश
खुशियाँ हुई कैद
पंख भी कटे।
46
प्राण हुए हैं
अब बोझ -से भारी
चले भी आओ।
47
कैसा मौसम!
झुलसी हैं ऋचाएँ
असुर हँसें।
48
उर -पाँखुरी
झेले पाषाण -वर्षा
अस्तित्व मिटे।
49
ईर्ष्या सर्पिणी
फुत्कारे अहर्निश
झुलसे मन।
50
कहाँ से लाएँ
चन्दनवन -मन !
लपटें घेरे।
51
अश्रु से सींचे
महाकाव्य के पन्ने
रच दी नारी ।
52
मन बाँचा
अन्धे असुर बने
रक्त -पिपासु ।
53
दर्द जो पीते
व्यथित के मन का
सुधा न माँगे।