"क्यों फिरै भरमति सुरति / गन्धर्व कवि प. नन्दलाल" के अवतरणों में अंतर
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|रचनाकार=गन्धर्व कवि पं नन्दलाल | |रचनाकार=गन्धर्व कवि पं नन्दलाल | ||
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− | '''क्यों फिरै भ्रमति श्रुति , | + | '''क्यों फिरै भ्रमति श्रुति , गुरुआं की टहल करै नै ।। टेक ।।''' |
चंचल-चित्त ला चरण-शरण मैं, गम की गागर भरले नै, | चंचल-चित्त ला चरण-शरण मैं, गम की गागर भरले नै, |
18:03, 17 जुलाई 2019 के समय का अवतरण
क्यों फिरै भ्रमति श्रुति , गुरुआं की टहल करै नै ।। टेक ।।
चंचल-चित्त ला चरण-शरण मैं, गम की गागर भरले नै,
काम-क्रोध मद-लोभ मोह तज, बुरे कर्म से डरले नै,
शील-सब्र संतोष-शान्ति, संत-समागम करले नै,
सूरत-मूरत उर मैं धरले, परले पार तिरै नै।।
कर्म का काजल शर्म का सुरमा, नैनों बीच रमाले री,
मन की मेंहदी लगन की लाली, हाथों बीच रमाले री,
ज्ञान-विलक्षण तिक्ष्ण-चक्षु कर, घर पीया का पाले री,
अटल महल मैं सेज बिछाले री, पी संग शैल करै नै।।
दया का दामण कर्म की कुर्ति, हरि रंग मै रंगवाले,
गुरू चरण का चीर औढके, गम का घोटा लगवाले,
ओढ पहर सिंगर कै सजनी, झटपट तट पै जाले,
सत्संग गंग मैं आले-न्हाले, मन का मैल हरै नै।।
गरज का गहना पहर लाडली, ओढ पहर सिंगरले,
प्रेम पियाला पिला पिया को, अपणे बस मैं करले,
गुरू चरण की शरण चली, जा परलै पार उतरले,
नंदलाल को उर मैं धरले, निर्भय कदम धरै नै।।