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"सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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प्रीत में है जीवन झोकों
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प्रीत में है जीवन जोखों
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सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी
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सच है दुनियावालों कि हम हैं अनाड़ी
  
भोर सुहानी चंचल बालक,
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दुनिया ने कितना समझाया
लरकाई (लडकाई) दिखलाये,
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कौन है अपना कौन पराया
हाथ से बैठा गढे खिलौने,
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फिर भी दिल की चोट छुपा कर
पैर से तोडत जाये ।
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हमने आपका दिल बहलाया
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खुद पे मर मिटने की ये ज़िद थी हमारी
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सच है दुनियावालों कि हम हैं अनाड़ी
  
वो तो है, वो तो है
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असली नकली चेहरे देखे
एक मूरख बालक,
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दिल पे सौ सौ पहरे देखे
तू तो नहीं नादान,
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मेरे दुखते दिल से पूछो
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क्या क्या ख्वाब सुनहरे देखे
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टूटा जिस तारे पे नज़र थी हमारी
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सच है दुनियावालों कि हम हैं अनाड़ी
  
आप बनाये आप बिगाडे
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दिल का चमन उजड़ते देखा
ये नहीं तेरी शान, ये नहीं तेरी शान
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प्यार का रंग उतरते देखा
 
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हमने हर जीने वाले को
ऐसा क्यों, फ़िर ऐसा क्यों...
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धन दौलत पे मरते देखा
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दिल पे मरने वाले मरेंगे भिखारी
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सच है दुनियावालों कि हम हैं अनाड़ी</poem>

11:23, 1 मार्च 2010 के समय का अवतरण

सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी
सच है दुनियावालों कि हम हैं अनाड़ी

दुनिया ने कितना समझाया
कौन है अपना कौन पराया
फिर भी दिल की चोट छुपा कर
हमने आपका दिल बहलाया
खुद पे मर मिटने की ये ज़िद थी हमारी
सच है दुनियावालों कि हम हैं अनाड़ी

असली नकली चेहरे देखे
दिल पे सौ सौ पहरे देखे
मेरे दुखते दिल से पूछो
क्या क्या ख्वाब सुनहरे देखे
टूटा जिस तारे पे नज़र थी हमारी
सच है दुनियावालों कि हम हैं अनाड़ी

दिल का चमन उजड़ते देखा
प्यार का रंग उतरते देखा
हमने हर जीने वाले को
धन दौलत पे मरते देखा
दिल पे मरने वाले मरेंगे भिखारी
सच है दुनियावालों कि हम हैं अनाड़ी