भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धूम-मेघ / बालस्वरूप राही" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालस्वरूप राही |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
  {{KKCatGeet}}
 
  {{KKCatGeet}}
 
<poem>
 
<poem>
इस तरह तो दर्द घट सकता नहीं
+
धूम-मेघ छाए आकाश
इस तरह तो वक़्त कट सकता नहीं
+
आस्तीनों से न आंसू पोंछिए
+
और ही तदबीर कोई सोचिए।
+
  
यह अकेलापन, अंधेरा, यह उदासी, यह घुटन
+
जन्मे हैं जंग लगी चिमनी के गर्भ से
द्वार तो हैं बन्द भीतर किस तरह झांके किरन।
+
जुड़ न सके पावस के रसमय सन्दर्भ से
 +
आँधी में उड़ते ज्यों फटे हुए ताश।
  
बन्द दरवाज़े ज़रा-से खोलिए
+
झुलस गये पौधे सब नदी पार खेत के
रोशनी के साथ हंसिए-बोलिए
+
छूट गये ऊसर में चिन्ह किसी प्रेत के
मौन पीले पात-सा झर जायेगा
+
ओर छोर फैला है सांवला प्रकाश।
तो हृदय का घाव खुद भर जायेगा।
+
  
एक सीढ़ी है हृदय में भी महज़ घर में नहीं
+
जब से ये छाये हैं खिली नहीं धूप
सर्जना के दूत आते हैं सभी हो कर वहीं।
+
कुहरे ने पोंछ दिया क्षितिजों का रूप
 +
सागर में तैर रही सूरज की लाश।
  
ये अहम की श्रृंखलाएं तोड़िए
+
इतनी तो कभी न थीं बाहें असमर्थ
और कुछ नाता गली से जोड़िए
+
खोल नहीं पाती हैं जीने का अर्थ
जब सड़क का शोर भीतर आयेगा
+
खोई प्रतिबिम्बों में बिम्ब की तलाश।
तब अकेलापन स्वयं मर जायेगा।
+
  
आइए कुछ रोज़ कोलाहल भरा जीवन जियें
+
धूम-मेघ छाए आकाश।
अंजुरी भर दूसरों के दर्द का अमृत पिएं
+
 
+
आइए, बातून अफवाहें सुनें
+
फिर अनागत के नये सपने बुनें
+
यह सिलेटी कोहरा छंट जायेगा
+
तो हृदय का दर्द खुद घट जायेगा।
+
  
 
</poem>
 
</poem>

12:48, 23 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

धूम-मेघ छाए आकाश

जन्मे हैं जंग लगी चिमनी के गर्भ से
जुड़ न सके पावस के रसमय सन्दर्भ से
आँधी में उड़ते ज्यों फटे हुए ताश।

झुलस गये पौधे सब नदी पार खेत के
छूट गये ऊसर में चिन्ह किसी प्रेत के
ओर छोर फैला है सांवला प्रकाश।

जब से ये छाये हैं खिली नहीं धूप
कुहरे ने पोंछ दिया क्षितिजों का रूप
सागर में तैर रही सूरज की लाश।

इतनी तो कभी न थीं बाहें असमर्थ
खोल नहीं पाती हैं जीने का अर्थ
खोई प्रतिबिम्बों में बिम्ब की तलाश।

धूम-मेघ छाए आकाश।