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"घर -2 / विनय सौरभ" के अवतरणों में अंतर

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बड़े भाई को कहता हूँ फलाँ काम देख लीजिएगा  मौसी के यहाँ चले जाइएगा, सुना है बीमार है    अब वही तो ए​​क बहन बची है माँ की !
 
बड़े भाई को कहता हूँ फलाँ काम देख लीजिएगा  मौसी के यहाँ चले जाइएगा, सुना है बीमार है    अब वही तो ए​​क बहन बची है माँ की !
  
याद है गुड़ के अरसे कितना भेजा करती थी हमारे  लिए !
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याद है गुड़ के अनरसे कितना भेजा करती थी हमारे  लिए !
  
 
चाहता हूँ बस छूट ही जाए !  
 
चाहता हूँ बस छूट ही जाए !  

14:23, 5 अक्टूबर 2018 के समय का अवतरण

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मैं चलता हूँ या अब मुझे चलना चाहिए
कहता हुआ आता हूँ घर के दरवाज़े पर

फिर कब आ पाऊँगा
या फिर मुझे जल्दी आ जाना चाहिए
मेरा झोला ठीक करते हुए
माँ कहती थी, जब वह थी
और दरवाजे से आँख भर मेरा जाना देखती थी

इस तरह से अपनी नौकरी पर जाने को निकलता हूँ घर से और थोड़ा घर पर ही छूट जाता हूँ

रूलाई बाहर आने से रोकता हूँ
बड़े भाई को कहता हूँ फलाँ काम देख लीजिएगा मौसी के यहाँ चले जाइएगा, सुना है बीमार है अब वही तो ए​​क बहन बची है माँ की !

याद है गुड़ के अनरसे कितना भेजा करती थी हमारे लिए !

चाहता हूँ बस छूट ही जाए !
कोई छूटी चीज़ याद आ जाए
और भागूँ घर के अंदर

अभिनय करूँ भीतर आते हुए
कि कमरे की खिड़की शायद खुली तो नहीं रह गयी ! शहर के किराये के घर की चाबी तो नहीं भूल आया ताखे पर  !

जब तक शहर के लिए बस आ नहीं जाती
नज़र बचाकर देखता रहता हूँ घर को