"पगध्वनि / शिवदेव शर्मा 'पथिक'" के अवतरणों में अंतर
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− | + | अलमस्त पथिक के पग उठते, | |
− | + | पगध्वनि सुनाई पड़ती है । | |
− | + | तिमिरांचल पर आशाओं की, | |
− | + | अरुणिमा सुनहली झड़ती है । | |
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− | + | बढ़नेवाला पंथी पथ पर , | |
− | + | दुलराता है तूफानों को। | |
− | + | फूलों का दर्द कहा करता , | |
− | + | बढ़ते जाना मस्तानों को। | |
− | + | मंजिल हो चाहे दूर मगर, | |
− | + | पग उठे -बढे परिश्रांत न हो । | |
− | + | मत रुको - झुको जाने वाले , | |
− | + | दो पल भी मन उद्भ्रांत न हो । | |
− | + | छाया में मधु विश्वासों की , | |
− | + | प्राणों की जलन ठहरती है । | |
− | + | अलमस्त पथिक के पग उठते, | |
− | + | पगध्वनि सुनाई पड़ती है । | |
− | + | आहट जो पहली -पहली हो , | |
− | + | उसमें जीवन का भान रहे । | |
− | + | अरुणोदय से चलकर पूछो , | |
− | + | कैसा होगा दिनमान कहे । | |
− | + | तो बढो पथिक! तुम चढो -चढो , | |
− | + | मिल जाता है सोपान तुम्हें ! | |
− | + | हे वर्द्धमान ! अब करता है , | |
− | + | आह्वान सुयश कल्याण तुम्हें ! | |
− | + | पगध्वनि है वह जिसको सुनकर , | |
− | + | मानवता राह पकड़ती है । | |
− | + | अलमस्त पथिक के पग उठते , | |
− | + | पगध्वनि सुनाई पड़ती है । | |
− | + | जब -जब पगध्वनि हो- हो उठती , | |
− | + | कोना-कोना जग जाता है । | |
− | + | पगध्वनि है उसका नाम कि , | |
− | + | जिसके लय में मंगल गाता है । | |
− | + | ओ ! पंथी के पग के छाले , | |
− | + | मुस्काओ, नवनिर्माण करो । | |
− | + | पगध्वनि जगी ,अब जगो विश्व , | |
− | + | जग -जग कर नवल विहान करो ! | |
− | + | आशा की पगध्वनि उठी- उठी , | |
− | + | पुलकित हो धरा सिहरती है । | |
− | + | अलमस्त पथिक के पग उठते , | |
− | + | पगध्वनि सुनाई पड़ती है। | |
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23:07, 10 अक्टूबर 2018 के समय का अवतरण
अलमस्त पथिक के पग उठते,
पगध्वनि सुनाई पड़ती है ।
तिमिरांचल पर आशाओं की,
अरुणिमा सुनहली झड़ती है ।
बढ़नेवाला पंथी पथ पर ,
दुलराता है तूफानों को।
फूलों का दर्द कहा करता ,
बढ़ते जाना मस्तानों को।
मंजिल हो चाहे दूर मगर,
पग उठे -बढे परिश्रांत न हो ।
मत रुको - झुको जाने वाले ,
दो पल भी मन उद्भ्रांत न हो ।
छाया में मधु विश्वासों की ,
प्राणों की जलन ठहरती है ।
अलमस्त पथिक के पग उठते,
पगध्वनि सुनाई पड़ती है ।
आहट जो पहली -पहली हो ,
उसमें जीवन का भान रहे ।
अरुणोदय से चलकर पूछो ,
कैसा होगा दिनमान कहे ।
तो बढो पथिक! तुम चढो -चढो ,
मिल जाता है सोपान तुम्हें !
हे वर्द्धमान ! अब करता है ,
आह्वान सुयश कल्याण तुम्हें !
पगध्वनि है वह जिसको सुनकर ,
मानवता राह पकड़ती है ।
अलमस्त पथिक के पग उठते ,
पगध्वनि सुनाई पड़ती है ।
जब -जब पगध्वनि हो- हो उठती ,
कोना-कोना जग जाता है ।
पगध्वनि है उसका नाम कि ,
जिसके लय में मंगल गाता है ।
ओ ! पंथी के पग के छाले ,
मुस्काओ, नवनिर्माण करो ।
पगध्वनि जगी ,अब जगो विश्व ,
जग -जग कर नवल विहान करो !
आशा की पगध्वनि उठी- उठी ,
पुलकित हो धरा सिहरती है ।
अलमस्त पथिक के पग उठते ,
पगध्वनि सुनाई पड़ती है।