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| − | {{KKGlobal}}
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| − | {{KKRachna
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| − | |रचनाकार=कुमार मुकुल
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| − | |संग्रह=
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| − | {{KKCatK
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| − | avita}}
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| − | <poem>
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| − | क्या 
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| − | हर प्यार करने वाले से 
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| − | शादी करनी होगी मुझे
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| − | पूछती है-- उर्सुला
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| − | और भाग खड़ी होती है
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| − | विन्सेंट को पुकारती
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| − | लाल सिर वाला बेवकूफ़
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| − | 
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| − | सुबहें होती आई हैं
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| − | 
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| − | शबनम से नम 
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| − | 
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| − | और आग से भरी हुईं
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| − | 
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| − | हमेशा से
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| − | 
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| − | और शामें
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| − | 
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| − | उदास-ख़ूबसूरत
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| − | 
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| − | ग़ुलाम हो चुकी भाषा के व्याकरण को
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| − | 
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| − | अपनी बेहिसाब जिरहों से लाजवाब करता
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| − | 
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| − | मिटटी की परतें तोड़
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| − | 
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| − | फेंकता अंकुर आज़ाद
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| − | 
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| − | कि ख़ब्तख़याली के
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| − | 
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| − | टकटकी बांधता, खिलखिलाता, भागता
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| − | 
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| − | बदहवास
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| − | 
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| − | बिखरती लटें संवारता, चुंबनों से
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| − | 
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| − | दुपट्टों से पसीना पोंछता
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| − | 
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| − | आता है प्यार -
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| − | 
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| − | चूजे-सा पर तोलता
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| − | 
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| − | भरता आशंकाओं से
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| − | 
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| − | कि उसकी रक्षा या हत्या को 
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| − | 
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| − | आतुर हो उठते हम
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| − | 
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| − | कि बाज-बखत
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| − | 
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| − | खड़ी करनी चाहते दीवार
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| − | 
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| − | उसे बचाने की
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| − | 
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| − | दुनियावी जद्दो-जहद से 
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| − | 
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| − | इससे गाफ़िल कि वह ख़ुद
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| − | 
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| − | एक बुलन्द निगाह है -
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| − | 
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| − | दरो-दीवार को भेदती - फिर
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| − | 
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| − | अन्तत: चूक कर
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| − | 
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| − | दुहराते हैं हम - प्यार 
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| − | 
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| − | और दुश्वार करते हैं जीना
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| − | 
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| − | और टूटता है एक सपना
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| − | 
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| − | नींद में जागे का।
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| − | 
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| − | 
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| − | हर विंसेंट की 
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| − | 
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| − | एक उर्सुला होती है
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| − | 
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| − | उसे दीवाना-मुँहफट-सिरफिरा कह
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| − | 
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| − | उसके मुँह पर किवाड़ भेड़ती
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| − | 
  |   | 
| − | और होता है वह
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| − | 
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| − | एक विन्सेंट ही
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| − | 
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| − | ख़्याल को सनम समझता
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| − | 
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| − | ख़ुद को
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| − | 
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| − | ख़्याल से भी कम समझता
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| − | 
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| − | प्रतीज्ञाएँ करता-तोडता
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| − | 
  |   | 
| − | महान मूर्खताओं से चिढ़ता-चिढ़ाता उन्हें मुँह
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| − | 
  |   | 
| − | भटकाता ख़ुद को दर-ब-दर
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| − | 
  |   | 
| − | 
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| − | रहने और खाने की व्यवस्था पर
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| − | 
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| − | अध्यापक मिल जाते हैं हमेशा से
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| − | 
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| − | और आज भी
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| − | 
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| − | फिर क्या चाहिए था विन्सेंट को
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| − | 
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| − | याद करने के पैसे तो नहीं लगते
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| − | 
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| − | 
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| − | यादें तो बस
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| − | 
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| − | जीवन मांगती हैं
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| − | 
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| − | एक निगाह में
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| − | 
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| − | एक बैठती आह में
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| − | 
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| − | बिखरता जीवन।
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| − | 
  |   | 
| − | 
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| − | इजाडोरा कहती है -
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| − | 
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| − | प्रेम
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| − | 
  |   | 
| − | शरीर की नहीं
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| − | 
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| − | आत्मा की बीमारी है
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| − | 
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| − | यह ज्वर
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| − | 
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| − | जला डालता है सारे कलुष
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| − | 
  |   | 
| − | प्रेमी बन जाते हैं
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| − | 
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| − | योद्धा-पादरी-शिक्षक
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| − | 
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| − | यह ज्वर भर जाता है
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| − | 
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| − | आँखों में चमक
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| − | 
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| − | भाषा में खुनक
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| − | 
  |   | 
| − | फिर तमाम विन्सेंटों के भीतर
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| − | 
  |   | 
| − | उनकी उर्सुलाएं जाग पड़ती हैं
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| − | 
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| − | बोलने लगते हैं वो
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| − | 
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| − | महान प्रार्थनाएं प्रयाण-गीत पाठ
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| − | 
  |   | 
| − | 
  |   | 
| − | दुनिया के क्रूरतम तानाशाह भी
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| − | 
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| − | अपने भीतर समेटते रहते हैं
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| − | 
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| − | एक बिखरती उर्सुला
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| − | 
  |   | 
| − | 
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| − | कभी-कभी ज्वर टूटता है
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| − | 
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| − | तब तक देर हो चुकी होती है
  |   | 
| − | 
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| − | सच्ची जिदें
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| − | 
  |   | 
| − | बदल चुकी होती हैं
  |   | 
| − | 
  |   | 
| − | झूठी सनकों में
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| − | 
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| − | 
  |   | 
| − | उर्सुला को बचाने की ज़िद्द में वो
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| − | 
  |   | 
| − | मार चुके होते हैं 
  |   | 
| − | 
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| − | अपने अंदर की उर्सुला को ही
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| − | 
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| − | 
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| − | जीवनानंद में नाचती
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| − | 
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| − | नीली आँखों का प्रकाश थी उर्सुला
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| − | 
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| − | विन्सेंट के लिए
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| − | 
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| − | उन कुछेक शामों-सुबहों की तरह
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| − | 
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| − | जो होते-बीतते
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| − | 
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| − | बैठ जाती हैं चुपके से भीतर
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| − | 
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| − | फिर जब दुनिया का मायावी प्रकाश
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| − | 
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| − | चौंधियाता है हमें
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| − | तो खो जाते हैं हम
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| − | 
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| − | कहीं भीतर दुबके
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| − | 
  |   | 
| − | प्रकाश-पल की तलाश में
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| − | 
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| − | टिमटिमाता रहता है जो-- अविच्छिन्न
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| − | 
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| − | एक टीस की तरह
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| − | 
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| − | कि उन प्रकाश-पलों को फिर-फिर
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| − | 
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| − | बदला नहीं जा सकता
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| − | सुबहों व शामों के प्रकाशवृत्तों में
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| − | विन्सेंट याद करता है-- ईसा को
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| − | कि हरेक चीज़ मिल जाती है
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| − | किसी भी क़िताब से
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| − | ज़्यादा सम्पूर्ण और सुन्दर रूप में
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| − | कि कोई भी दुख
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| − | बिना उम्मीद के नहीं आता
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| − | हाँ 
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| − | 
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| − | सचमुच की उर्सुला जब
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| − | 
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| − | खो जाती है कहीं
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| − | ज़िन्दगी की क़िताब में
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| − | तब
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| − | जीवित होने लगती है वह
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| − | विन्सेंट के लहू में-
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| − | निगाह में उसकी
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  |   | 
| − | उसके इशारों में-
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| − | फिर-फिर
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| − | रची जा रही होती है वह कैनवसों पर
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| − | 
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| − | मिथ्या आवरणों के भीतर
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| − | अपने मूल से भी
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| − | खरे रूप में।
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