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"निर्मलमना ! / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | विद्रूप हुआ रूप। | ||
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+ | पावन प्यार | ||
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+ | शान्त- विमल | ||
+ | शरदेन्दु -सा भाल | ||
+ | नैनों की ज्योति | ||
+ | बहाती सुधा -धार | ||
+ | ओक से पिया प्यार। | ||
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+ | हार जाएँगी | ||
+ | घुमड़तीं आँधियाँ | ||
+ | अडिग शिला! | ||
+ | शिव संकल्प लिया- | ||
+ | ‘क्षितिज हम छुएँ !’ | ||
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09:49, 4 जनवरी 2020 के समय का अवतरण
1
विश्वास छला
ईर्ष्या- अनल जगी
सब ही जला
फूटी आँखों न भाया
सच्चा प्यार किसी का।
2
जलाने चले
औरों के घर- द्वार
हजारों बार
जीभर वे मुस्काए
विद्रूप हुआ रूप।
3
निर्मलमना !
गोमुख के जल-सा
पावन प्यार
समझेंगे वे कैसे
जो नालियों में डूबे?
4
शान्त- विमल
शरदेन्दु -सा भाल
नैनों की ज्योति
बहाती सुधा -धार
ओक से पिया प्यार।
5
हार जाएँगी
घुमड़तीं आँधियाँ
अडिग शिला!
शिव संकल्प लिया-
‘क्षितिज हम छुएँ !’
-०-