"जो बीत गई / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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जो बीत गई सो बात गई! | जो बीत गई सो बात गई! | ||
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माना, वह बेहद प्यारा था, | माना, वह बेहद प्यारा था, | ||
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वह डूब गया तो डूब गया; | वह डूब गया तो डूब गया; | ||
− | + | अंबर के आनन को देखे, | |
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कितने इसके तारे टूटे, | कितने इसके तारे टूटे, | ||
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कितने छूट गए कहाँ मिले; | कितने छूट गए कहाँ मिले; | ||
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पर बोलो टूटे तारों पर | पर बोलो टूटे तारों पर | ||
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कब अंबर शोक मनाता है! | कब अंबर शोक मनाता है! | ||
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जो बीत गई सो बात गई! | जो बीत गई सो बात गई! | ||
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जीवन में वह था एक कुसुम, | जीवन में वह था एक कुसुम, | ||
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थे उस पर नित्य निछावर तुम, | थे उस पर नित्य निछावर तुम, | ||
− | + | वह सूख गया तो सूख गया; | |
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मधुवन की छाती को देखो, | मधुवन की छाती को देखो, | ||
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सूखी कितनी इसकी कलियाँ, | सूखी कितनी इसकी कलियाँ, | ||
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मुरझाई कितनी वल्लरियाँ, | मुरझाई कितनी वल्लरियाँ, | ||
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जो मुरझाई फिर कहाँ खिलीं; | जो मुरझाई फिर कहाँ खिलीं; | ||
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पर बोलो सूखे फूलों पर | पर बोलो सूखे फूलों पर | ||
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कब मधुवन शोर मचाता है; | कब मधुवन शोर मचाता है; | ||
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जो बीत गई सो बात गई! | जो बीत गई सो बात गई! | ||
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जीवन में मधु का प्याला था, | जीवन में मधु का प्याला था, | ||
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तुमने तन-मन दे डाला था, | तुमने तन-मन दे डाला था, | ||
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वह टूट गया तो टूट गया; | वह टूट गया तो टूट गया; | ||
− | + | मदिरालय का आँगन देखो, | |
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कितने प्याले हिल जाते हैं, | कितने प्याले हिल जाते हैं, | ||
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गिर मिट्टी में मिल जाते हैं, | गिर मिट्टी में मिल जाते हैं, | ||
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जो गिरते हैं कब उठते हैं; | जो गिरते हैं कब उठते हैं; | ||
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पर बोलो टूटे प्याले पर | पर बोलो टूटे प्याले पर | ||
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कब मदिरालय पछताता है! | कब मदिरालय पछताता है! | ||
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जो बीत गई सो बात गई! | जो बीत गई सो बात गई! | ||
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मृदु मिट्टी के हैं बने हुए, | मृदु मिट्टी के हैं बने हुए, | ||
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मधुघट फूटा ही करते हैं, | मधुघट फूटा ही करते हैं, | ||
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लघु जीवन लेकर आए हैं, | लघु जीवन लेकर आए हैं, | ||
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प्याले टूटा ही करते हैं, | प्याले टूटा ही करते हैं, | ||
− | + | फिर भी मदिरालय के अंदर | |
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मधु के घट हैं, मधुप्याले हैं, | मधु के घट हैं, मधुप्याले हैं, | ||
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जो मादकता के मारे हैं, | जो मादकता के मारे हैं, | ||
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वे मधु लूटा ही करते हैं; | वे मधु लूटा ही करते हैं; | ||
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वह कच्चा पीने वाला है | वह कच्चा पीने वाला है | ||
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जिसकी ममता घट-प्यालों पर, | जिसकी ममता घट-प्यालों पर, | ||
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जो सच्चे मधु से जला हुआ | जो सच्चे मधु से जला हुआ | ||
− | + | कब रोता है, चिल्लाता है! | |
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21:24, 25 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
जो बीत गई सो बात गई!
जीवन में एक सितारा था,
माना, वह बेहद प्यारा था,
वह डूब गया तो डूब गया;
अंबर के आनन को देखे,
कितने इसके तारे टूटे,
कितने छूट गए कहाँ मिले;
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है!
जो बीत गई सो बात गई!
जीवन में वह था एक कुसुम,
थे उस पर नित्य निछावर तुम,
वह सूख गया तो सूख गया;
मधुवन की छाती को देखो,
सूखी कितनी इसकी कलियाँ,
मुरझाई कितनी वल्लरियाँ,
जो मुरझाई फिर कहाँ खिलीं;
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है;
जो बीत गई सो बात गई!
जीवन में मधु का प्याला था,
तुमने तन-मन दे डाला था,
वह टूट गया तो टूट गया;
मदिरालय का आँगन देखो,
कितने प्याले हिल जाते हैं,
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं,
जो गिरते हैं कब उठते हैं;
पर बोलो टूटे प्याले पर
कब मदिरालय पछताता है!
जो बीत गई सो बात गई!
मृदु मिट्टी के हैं बने हुए,
मधुघट फूटा ही करते हैं,
लघु जीवन लेकर आए हैं,
प्याले टूटा ही करते हैं,
फिर भी मदिरालय के अंदर
मधु के घट हैं, मधुप्याले हैं,
जो मादकता के मारे हैं,
वे मधु लूटा ही करते हैं;
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट-प्यालों पर,
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है, चिल्लाता है!
जो बीत गई सो बात गई!