"अमरूद सुर्खा / चन्दन सिंह" के अवतरणों में अंतर
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जब बच्चे भी | जब बच्चे भी |
02:05, 6 नवम्बर 2018 के समय का अवतरण
एक ऐसे समय
जब बच्चे भी
अपनी कॉपियों के पन्नों पर रबड़ घिसकर
मिटाने लगे हैं उसे
मैं भी अपनी जीभ के पन्ने से
मिटाता हूँ इलाहाबाद
इन दिनों
अगर कहीं पढ़ता हूँ इलाहाबाद
तो आँखे बंद करता हूँ सायास
इस उम्मीद में कि शायद
मेरी पलकों-बरौनियों से पुँछकर
मिट जाएगा वह जो लिखा हुआ है
अब यह मेरे कानों में आता है
ग़लत पते पर पहुँची
किसी चिट्ठी की तरह
मैं इसे भूल रहा हूँ
जैसे यह कभी याद नहीं था मुझे
पर तभी अचानक
मेरी इन कोशिशों में
गड़ने लगता है
दाँतों में फँसा
अमरूद का एक अदद बीज
अमरूद जो दरअसल
ख़ुशबू पर
स्वाद की सुर्ख़ लिपि में लिखा
इलाहाबाद है
एक गूँजता हुआ उच्चारण
उस इलाके की धूप-मिट्टी-बारिश-लोग-बाग का अमरूद सुर्खा
हाथ में लेते ही
उंगलियों में लग जाता है
इलाहाबाद
शायद ये अमरूद
बचा लेंगें इलाहाबाद
जैसे कुछ नदियों ने मिलकर
बचा लिया था
तीर्थराज प्रयाग।