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"घाव तुम्हारे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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गुलाबी सर्दी
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गर्माहट देता है
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साथ तुम्हारा।
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सुख में भूलो
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दुख में मुझे कभी
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भुला न देना।
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कुछ न बाँटो
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पर थोड़ा -सा दुःख
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मुझे भी देना।
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'''घाव तुम्हारे
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तुम प्राणों में रहो
 
तुम प्राणों में रहो
 
इतना चाहूँ।
 
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भोर  मुस्काई
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मुकुलित  कमल
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नैन तुम्हारे
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जन्मों की माया
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कैसे है बाँधे जीव
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मन व्याकुल।
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नेह से भरे
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गंगा नहाके आए
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मृदु वचन।
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11:05, 11 फ़रवरी 2019 के समय का अवतरण


61
घाव तुम्हारे
रिसे हैं निरंतर
मेरे भीतर।
62
प्यास बुझाई
जीभरके पिए थे
तेरे जो आँसू।
63
सीने लगाऊँ
हर अश्क तुम्हारा
मुझको सींचे।
64
सौ-सौ पहरे
फिर -फिर खुलते
घाव गहरे।
65
युगों से ओढ़ी
दुःख -भरी चादर
कैसे उतारूँ?
66
कुछ न जानूँ
धर्म -कर्म क्या होता
तुझको मानूँ
67
जग ये छोड़े
तुम प्राणों में रहो
इतना चाहूँ।
68
भोर मुस्काई
मुकुलित कमल
नैन तुम्हारे
69
जन्मों की माया
कैसे है बाँधे जीव
मन व्याकुल।
70
नेह से भरे
गंगा नहाके आए
मृदु वचन।