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"ये पत्तियों पे जो शबनम का हार रक्खा है / के. पी. अनमोल" के अवतरणों में अंतर

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जिसने हर इक की ज़रूरत का भरम रक्खा है
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ये पत्तियों पे जो शबनम का हार रक्खा है
रब ने भी उसकी सख़ावत का भरम रक्खा है
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न जाने किसने गले से उतार रक्खा है
  
उसका एह्सान कभी भूल नहीं सकता मैं
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उस एक उजले सवेरे के वास्ते कब से
जिसने हर पल मेरी इज़्ज़त का भरम रक्खा है
+
अँधेरी रात ने दामन पसार रक्खा है
  
मुझसे नफ़रत भी दिखावे के लिए कर थोड़ी
+
ग़ज़ल ज़ुबां पे, हँसी लब पे, रंग आँखों में
इसी नफरत ने मुहब्बत का भरम रक्खा है
+
तुम्हारे प्यार ने मुझको सँवार रक्खा है
  
मेरी आदत है उसे देखे बिना चैन नहीं
+
मज़ा सफ़र में मिले और बची रहे सेहत
उसने भी ख़ूब इस आदत का भरम रक्खा है
+
टिफ़िन में खाने के साथ उसने प्यार रक्खा है
  
नाम लिख लिख के इमारात कि दीवारों पर
+
कुछेक लोग मुझे जां से ज़्यादा प्यारे हैं
तुमने क्या ख़ूब विरासत का भरम रक्खा है
+
तुम्हारा नाम उन्हीं में शुमार रक्खा है
  
फूल के बीच में काँटों को बसा कर तुमने
+
अगर रुका तो कहीं ये थकान उठने न दे
किस नफ़ासत से नज़ाकत का भरम रक्खा है
+
ये सोच, चलना अभी बरक़रार रक्खा है
  
वो दिलासे जो छलावों की तरह है अनमोल
+
ज़रा-सा देख के अनमोल तुम बताओ मुझे
उन दिलासों ने हुकूमत का भरम रक्खा है
+
ये मेरे नाम से क्या इश्तिहार रक्खा है
 
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22:43, 23 नवम्बर 2018 के समय का अवतरण

ये पत्तियों पे जो शबनम का हार रक्खा है
न जाने किसने गले से उतार रक्खा है

उस एक उजले सवेरे के वास्ते कब से
अँधेरी रात ने दामन पसार रक्खा है

ग़ज़ल ज़ुबां पे, हँसी लब पे, रंग आँखों में
तुम्हारे प्यार ने मुझको सँवार रक्खा है

मज़ा सफ़र में मिले और बची रहे सेहत
टिफ़िन में खाने के साथ उसने प्यार रक्खा है

कुछेक लोग मुझे जां से ज़्यादा प्यारे हैं
तुम्हारा नाम उन्हीं में शुमार रक्खा है

अगर रुका तो कहीं ये थकान उठने न दे
ये सोच, चलना अभी बरक़रार रक्खा है

ज़रा-सा देख के अनमोल तुम बताओ मुझे
ये मेरे नाम से क्या इश्तिहार रक्खा है