भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एकान्त टूटा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
'''रिश्ते हैं सर्द''' | '''रिश्ते हैं सर्द''' | ||
आँच बनाए रखो | आँच बनाए रखो | ||
− | जीवन | + | जीवन बचे |
+ | मेहँदी रचे हाथ | ||
+ | नित नया ही रचें । | ||
14 | 14 | ||
तन -कस्तूरी | तन -कस्तूरी |
11:34, 22 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण
13
रिश्ते हैं सर्द
आँच बनाए रखो
जीवन बचे
मेहँदी रचे हाथ
नित नया ही रचें ।
14
तन -कस्तूरी
मन- मृग आकुल
हाँफता रहा
अगर तू न मिला
कुछ नहीं हासिल।
15
जुड़े हैं प्राण
सूत्र प्यार तुम्हारा
कच्ची है डोर
हाथ में तुम्हारे हैं
इसके दोनों छोर।
16
काल से परे
होते सब सम्बन्ध
टूटते नहीं
तोड़े कोई जितना
उतने और जुड़ें।
17
तेरी छुअन
भूल न सका तन
रोम-रोम में
घुली तेरी खुशबू
बन गई चन्दन।
18
एकान्त टूटा
मंदिर की सीढ़ियाँ
हुई मुखर,
तेरे चरण चूमें
आनन्द-पगी झूमें।
19
मन-पाटल
झरी हर पाँखुरी
शूल ही बचे।
धूल भरी साँझ है
अब कोई क्या रचे!