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"कोई ‘हिटलर’ अगर हमारे मुल्क में जनमे तो / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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बिन पानी का बादल कोई हवा में गरजे तो
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मज़लूमों के चिथड़ों पर भी नज़र गड़ाये हो
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ख़ुद परिधान रेशमी पल-पल बदल के निकले तो
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दूर बैठकर तब भी आप तमाशा देखेंगे
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जनता से चलनी में वो पानी भरवाये तो
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कितने मेहनतकश दर-दर की ठोकर खायेंगे
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ज़ालिम अपने नाम का सिक्का नया चला दे तो
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वो मेरा हबीब है उससे कैसे मिलना हो
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कोई दिलों में यारों के नफ़रत भड़काये तो
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जिसके नाम की माला मेरे गले में रहती हैं
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वही मसीहा छुरी मेरी गरदन पर रख दे तो
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आँख मूँदकर कर लेंगे उस पर विश्वास मगर
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दग़ाबाज सिरफिरा वो हमको अंधा समझे तो
 
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15:11, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण

कोई ‘हिटलर ‘ अगर हमारे मुल्क में जनमे तो
सनक में अपनी लोगों का सुख-चैन चुरा ले तो

अच्छे दिन आयेंगे, मीठे- मीठे जुमलों में
बिन पानी का बादल कोई हवा में गरजे तो

मज़लूमों के चिथड़ों पर भी नज़र गड़ाये हो
ख़ुद परिधान रेशमी पल-पल बदल के निकले तो

दूर बैठकर तब भी आप तमाशा देखेंगे
जनता से चलनी में वो पानी भरवाये तो

कितने मेहनतकश दर-दर की ठोकर खायेंगे
ज़ालिम अपने नाम का सिक्का नया चला दे तो

वो मेरा हबीब है उससे कैसे मिलना हो
कोई दिलों में यारों के नफ़रत भड़काये तो

जिसके नाम की माला मेरे गले में रहती हैं
वही मसीहा छुरी मेरी गरदन पर रख दे तो

आँख मूँदकर कर लेंगे उस पर विश्वास मगर
दग़ाबाज सिरफिरा वो हमको अंधा समझे तो