"कि अभाव से उसके / अरुणा राय" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=अरुणा राय | |रचनाकार=अरुणा राय | ||
− | }} | + | }} |
− | ... पर ले जाकर | + | {{KKCatKavita}} |
− | क्लिक करती हूं ..... | + | <poem> |
+ | माउस को | ||
+ | ... पर ले जाकर | ||
+ | क्लिक करती हूं ..... | ||
− | याहू मैसेंजर का बक्सा | + | याहू मैसेंजर का बक्सा |
− | कौंधता हुआ आ जाता है उसी तरह | + | कौंधता हुआ आ जाता है उसी तरह |
− | पर जो नहीं आते | + | पर जो नहीं आते |
− | वे हैं शब्द | + | वे हैं शब्द |
− | हाय या हाई या कहां हैं आप ... | + | हाय या हाई या कहां हैं आप ... |
− | के जवाब में कौंधते | + | के जवाब में कौंधते |
− | चले आते थे जो | + | चले आते थे जो |
− | मतलब जो रोज आती थी परदे पर | + | मतलब जो रोज आती थी परदे पर |
− | वह छाया नहीं थी मात्र | + | वह छाया नहीं थी मात्र |
− | जैसा कि सोचती थी मैं | + | जैसा कि सोचती थी मैं |
− | कभी-कभी | + | कभी-कभी |
− | ठीक है कि एक परदा रहता था बीच में | + | ठीक है कि एक परदा रहता था बीच में |
− | पर परदे के पीछे की दुनिया | + | पर परदे के पीछे की दुनिया |
− | उतनी अबूझ नहीं थी कभी | + | उतनी अबूझ नहीं थी कभी |
− | जैसी कि लग रही है | + | जैसी कि लग रही है |
− | अब इस समय | + | अब इस समय |
− | जब कि वह नहीं है वहां | + | जब कि वह नहीं है वहां |
− | परदे के उस पार | + | परदे के उस पार |
− | एक शून्य को खटखटाता | + | एक शून्य को खटखटाता |
− | चला जा रहा | + | चला जा रहा |
− | पर शून्य है कि | + | पर शून्य है कि |
− | पानी की लकीर तरह | + | पानी की लकीर तरह |
− | माउस क्लिक करने की क्रिया को | + | माउस क्लिक करने की क्रिया को |
− | लील जा रहा है | + | लील जा रहा है |
− | ओह क्या करूं मैं | + | ओह क्या करूं मैं |
− | कि एक खालीपन ने भर दिया है मुझे | + | कि एक खालीपन ने भर दिया है मुझे |
− | इस तरह | + | इस तरह |
− | कि खाली नहीं कर पा रही खुद को | + | कि खाली नहीं कर पा रही खुद को |
− | विचार से | + | विचार से |
− | कि भाव से | + | कि भाव से |
− | कि अभाव से | + | कि अभाव से |
उसके... | उसके... | ||
+ | </poem> |
22:47, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
माउस को
... पर ले जाकर
क्लिक करती हूं .....
याहू मैसेंजर का बक्सा
कौंधता हुआ आ जाता है उसी तरह
पर जो नहीं आते
वे हैं शब्द
हाय या हाई या कहां हैं आप ...
के जवाब में कौंधते
चले आते थे जो
मतलब जो रोज आती थी परदे पर
वह छाया नहीं थी मात्र
जैसा कि सोचती थी मैं
कभी-कभी
ठीक है कि एक परदा रहता था बीच में
पर परदे के पीछे की दुनिया
उतनी अबूझ नहीं थी कभी
जैसी कि लग रही है
अब इस समय
जब कि वह नहीं है वहां
परदे के उस पार
एक शून्य को खटखटाता
चला जा रहा
पर शून्य है कि
पानी की लकीर तरह
माउस क्लिक करने की क्रिया को
लील जा रहा है
ओह क्या करूं मैं
कि एक खालीपन ने भर दिया है मुझे
इस तरह
कि खाली नहीं कर पा रही खुद को
विचार से
कि भाव से
कि अभाव से
उसके...