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"श्री कनेर का मन / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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| + | अंग-अंग होता जहरीला | ||
| + | जड़ से पत्तों तक | ||
| + | केवल कोयल, बुलबुल, मैना | ||
| + | के ये हितचिंतक | ||
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| + | जो मीठा बोलें | ||
| + | ये बख़्शें उनका ही जीवन | ||
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| + | आस पास जब सभी दुखी हैं | ||
| + | सूरज के वारों से | ||
| + | विषधर जी विष चूस रहे हैं | ||
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| + | छाती फटती है खेतों की | ||
| + | इन पर है सावन | ||
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| + | अगर न चढ़ते देवों पर तो | ||
| + | नागफनी से ये भी | ||
| + | तड़ीपार होते समाज से | ||
| + | बनते मरुथल सेवी | ||
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| + | धर्म ओढ़कर बने हुए हैं | ||
| + | सदियों से पावन | ||
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23:37, 20 जनवरी 2019 के समय का अवतरण
नीलकंठ को अर्पित करते
बीत गया बचपन
तब जाना
है बड़ा विषैला
श्री कनेर का मन
अंग-अंग होता जहरीला
जड़ से पत्तों तक
केवल कोयल, बुलबुल, मैना
के ये हितचिंतक
जो मीठा बोलें
ये बख़्शें उनका ही जीवन
आस पास जब सभी दुखी हैं
सूरज के वारों से
विषधर जी विष चूस रहे हैं
लू के अंगारों से
छाती फटती है खेतों की
इन पर है सावन
अगर न चढ़ते देवों पर तो
नागफनी से ये भी
तड़ीपार होते समाज से
बनते मरुथल सेवी
धर्म ओढ़कर बने हुए हैं
सदियों से पावन
