भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भौंक रहे कुत्ते / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र |संग्रह=नीम तल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatNavgeet}}
 
{{KKCatNavgeet}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
हर आने जाने वाले पर
 +
भौंक रहे कुत्ते
  
 +
निर्बल को दौड़ा लेने में
 +
मज़ा मिले जब
 +
तो
 +
क्यों ये भौंक रहे हैं
 +
इससे क्या मतलब इनको
 +
 +
हल्की से हल्की आहट पर
 +
चौंक रहे कुत्ते
 +
 +
हर गाड़ी का पीछा करते
 +
सदा बिना मतलब
 +
कई मिसालें बनीं
 +
न जाने ये सुधरेंगे कब
 +
 +
राजनीति गौ की चरबी से
 +
छौंक रहे कुत्ते
 +
 +
गर्मी इनसे सहन न होती
 +
फिर भी ये हरदम
 +
करते हरे भरे पेड़ों से
 +
बातें बहुत गरम
 +
 +
हाँफ-हाँफ नफ़रत की भट्ठी
 +
धौंक रहे कुत्ते
 
</poem>
 
</poem>

23:47, 20 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

हर आने जाने वाले पर
भौंक रहे कुत्ते

निर्बल को दौड़ा लेने में
मज़ा मिले जब
तो
क्यों ये भौंक रहे हैं
इससे क्या मतलब इनको
 
हल्की से हल्की आहट पर
चौंक रहे कुत्ते

हर गाड़ी का पीछा करते
सदा बिना मतलब
कई मिसालें बनीं
न जाने ये सुधरेंगे कब

राजनीति गौ की चरबी से
छौंक रहे कुत्ते

गर्मी इनसे सहन न होती
फिर भी ये हरदम
करते हरे भरे पेड़ों से
बातें बहुत गरम

हाँफ-हाँफ नफ़रत की भट्ठी
धौंक रहे कुत्ते