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"यंत्रों के जंगल में / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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आदमी अकेला है
 
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चूहों की भगदड़ में
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से डरकर
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शोर बहा
 
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यंत्रों से
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सीरत अब धेला है
 
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तरु सोचें
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सोचें
गया नील गगन कहाँ?
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कहाँ गया नील गगन
बढ़ता वन
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खा लेगा  
ले लेगा
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इनको भी
इनकी भी जान यहाँ
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ईंटों का बढ़ता वन
  
व्याकुल है मन पंछी
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व्याकुल है  
विरहा की बेला है
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मन-पंछी
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कैसी ये बेला है
 
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09:54, 21 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

यंत्रों के जंगल में
जिस्मों का मेला है
आदमी अकेला है

चूहों की भगदड़ में
स्वप्न गिरे
हुए चूर
समझौतों से डरकर
भागे आदर्श दूर

खाई की ओर चला
भेड़ों का रेला है

शोर बहा
गली-सड़क
मन की आवाज घुली
यंत्रों से तार जुड़े
रिश्तों की गाँठ खुली

सुंदर तन है सोना
सीरत अब धेला है

मुट्ठी भर तरु
सोचें
कहाँ गया नील गगन
खा लेगा
इनको भी
ईंटों का बढ़ता वन

व्याकुल है
मन-पंछी
कैसी ये बेला है