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"यंत्रों के जंगल में / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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आदमी अकेला है | आदमी अकेला है | ||
− | चूहों की | + | चूहों की भगदड़ में |
− | भगदड़ में | + | स्वप्न गिरे |
− | स्वप्न गिरे हुए चूर | + | हुए चूर |
− | समझौतों | + | समझौतों से डरकर |
− | से डरकर | + | |
भागे आदर्श दूर | भागे आदर्श दूर | ||
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शोर बहा | शोर बहा | ||
− | गली सड़क | + | गली-सड़क |
मन की आवाज घुली | मन की आवाज घुली | ||
− | यंत्रों से | + | यंत्रों से तार जुड़े |
− | तार जुड़े | + | |
रिश्तों की गाँठ खुली | रिश्तों की गाँठ खुली | ||
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सीरत अब धेला है | सीरत अब धेला है | ||
− | मुट्ठी भर | + | मुट्ठी भर तरु |
− | तरु सोचें | + | सोचें |
− | गया नील गगन | + | कहाँ गया नील गगन |
− | + | खा लेगा | |
− | + | इनको भी | |
− | + | ईंटों का बढ़ता वन | |
− | व्याकुल है मन पंछी | + | व्याकुल है |
− | + | मन-पंछी | |
+ | कैसी ये बेला है | ||
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09:54, 21 जनवरी 2019 के समय का अवतरण
यंत्रों के जंगल में
जिस्मों का मेला है
आदमी अकेला है
चूहों की भगदड़ में
स्वप्न गिरे
हुए चूर
समझौतों से डरकर
भागे आदर्श दूर
खाई की ओर चला
भेड़ों का रेला है
शोर बहा
गली-सड़क
मन की आवाज घुली
यंत्रों से तार जुड़े
रिश्तों की गाँठ खुली
सुंदर तन है सोना
सीरत अब धेला है
मुट्ठी भर तरु
सोचें
कहाँ गया नील गगन
खा लेगा
इनको भी
ईंटों का बढ़ता वन
व्याकुल है
मन-पंछी
कैसी ये बेला है