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"मत करो अलगाव / ओम नीरव" के अवतरणों में अंतर

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बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है?
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नायकों! हम बालकों से मत करो अलगाव!
संध्या की कालिमा उषा के पन्नों पर बिखरा जाता है!  
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याद हम आगत करेंगे विगत का सद्भाव!  
  
एक झूँक में ही अम्बर के मैंने दोनों छोर बुहारे,
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हम शिराओं के रुधिर तुम-
मेरे पौरुष के आगे तो टिके न नभ के चाँद सितारे;
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रुधिर के संचार,
फिर क्यों नभ के धवल पटल पर कागा-सा मडरा जाता है?
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प्राण हम-तुम देश के यह-
बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है?
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देश अपना प्यार ।
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प्यार से भर दें सर्जन का बूँद-बूँद तलाव!
  
पलकों के पल्लव पर ढुरकी बूँद कहीं जो पड़ी दिखायी,  
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कुछ तपन से, कुछ जलन से
नेह किरन से परस-परस कर मैंने तो हर बूँद सुखायी;
+
जगमगाती ज्योति,
फिर-फिर क्यों नयनों की सीपी में सागर घहरा जाता है?
+
फिर वही तम-तोम में पथ-
बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है?
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को दिखाती ज्योति ।
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ज्योति की तुम वर्तिका, हम स्नेह सिंचित स्राव!
  
उर-मरुथल को स्नेह-सिक्त कर मैंने हरित क्रान्ति सरसायी,  
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जाएँगे , ले जाएँगे भारत
पोषण-भरण-सृजन-अनुरंजन करने वाली पौध उगाई;
+
भँवर के पार,
द्रुम कोई हरियाते ही क्यों एक बीज पियरा जाता है?
+
चाहिए नन्हे पगों को
बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है?
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कुछ दिशा, कुछ प्यार ।
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हम बने पतवार युग की, तुम हमारी नाव!
  
कभी सोचता हूँ न करूँ कुछ जो होता है सो होने दूँ,  
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वक्ष पर हमको सजा लो
निर्झरणी के ही प्रवाह में जीवन लहरों को खोने दूँ;
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हम महकते फूल,  
पर 'नीरव' छौने को फिर-फिर कोई प्रिय हुलरा जाता है!  
+
फूल से लगने लगेंगे
बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है l
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पंथ के सब शूल ।
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नेह से 'नीरव' भरें हम, मातृ-भू के घाव!  
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नायकों! हम बालकों से मत करो अलगाव!
 
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10:36, 20 जून 2020 के समय का अवतरण

नायकों! हम बालकों से मत करो अलगाव!
याद हम आगत करेंगे विगत का सद्भाव!

हम शिराओं के रुधिर तुम-
रुधिर के संचार,
प्राण हम-तुम देश के यह-
देश अपना प्यार ।
प्यार से भर दें सर्जन का बूँद-बूँद तलाव!

कुछ तपन से, कुछ जलन से
जगमगाती ज्योति,
फिर वही तम-तोम में पथ-
को दिखाती ज्योति ।
ज्योति की तुम वर्तिका, हम स्नेह सिंचित स्राव!

जाएँगे , ले जाएँगे भारत
भँवर के पार,
चाहिए नन्हे पगों को
कुछ दिशा, कुछ प्यार ।
हम बने पतवार युग की, तुम हमारी नाव!

वक्ष पर हमको सजा लो
हम महकते फूल,
फूल से लगने लगेंगे
पंथ के सब शूल ।
नेह से 'नीरव' भरें हम, मातृ-भू के घाव!
नायकों! हम बालकों से मत करो अलगाव!