"वही कहानी / ओम नीरव" के अवतरणों में अंतर
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम नीरव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
एक झूँक में ही अम्बर के मैंने दोनों छोर बुहारे, | एक झूँक में ही अम्बर के मैंने दोनों छोर बुहारे, | ||
मेरे पौरुष के आगे तो टिके न नभ के चाँद सितारे; | मेरे पौरुष के आगे तो टिके न नभ के चाँद सितारे; | ||
− | फिर क्यों नभ के धवल पटल पर कागा-सा | + | फिर क्यों नभ के धवल पटल पर कागा-सा मँडरा जाता है? |
बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है? | बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है? | ||
10:32, 20 जून 2020 के समय का अवतरण
बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है?
संध्या की कालिमा उषा के पन्नों पर बिखरा जाता है!
एक झूँक में ही अम्बर के मैंने दोनों छोर बुहारे,
मेरे पौरुष के आगे तो टिके न नभ के चाँद सितारे;
फिर क्यों नभ के धवल पटल पर कागा-सा मँडरा जाता है?
बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है?
पलकों के पल्लव पर ढुरकी बूँद कहीं जो पड़ी दिखायी,
नेह किरन से परस-परस कर मैंने तो हर बूँद सुखायी;
फिर-फिर क्यों नयनों की सीपी में सागर घहरा जाता है?
बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है?
उर-मरुथल को स्नेह-सिक्त कर मैंने हरित क्रान्ति सरसायी,
पोषण-भरण-सृजन-अनुरंजन करने वाली पौध उगाई;
द्रुम कोई हरियाते ही क्यों एक बीज पियरा जाता है?
बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है?
कभी सोचता हूँ न करूँ कुछ जो होता है सो होने दूँ,
निर्झरणी के ही प्रवाह में जीवन लहरों को खोने दूँ;
पर 'नीरव' छौने को फिर-फिर कोई प्रिय हुलरा जाता है!
बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है l