भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जिया ही क्यों / ओम नीरव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम नीरव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeetika}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
बन गये मेरी ग़ज़ल में काफिया ही क्यों?  
 
बन गये मेरी ग़ज़ल में काफिया ही क्यों?  
  
सह लिया चुपछाप सब अपवाद लेकिन अब,  
+
सह लिया चुपचाप सब अपवाद लेकिन अब,  
 
सोचता हूँ ओठ मैंने-सी लिया ही क्यों?  
 
सोचता हूँ ओठ मैंने-सी लिया ही क्यों?  
  
पंक्ति 26: पंक्ति 26:
  
 
एक उलझा प्रश्न उलझा ही भले रहता,  
 
एक उलझा प्रश्न उलझा ही भले रहता,  
हल समझ नीरव तुझे पैदा ही क्यों?  
+
हल समझ नीरव तुझे पैदा किया ही क्यों?  
 
+
———————————
+
 
आधार छंद-रजनी  
 
आधार छंद-रजनी  
 
मापनी-गालगागा गालगागा-गालगागा गा  
 
मापनी-गालगागा गालगागा-गालगागा गा  
 
</poem>
 
</poem>

11:27, 20 जून 2020 के समय का अवतरण

मात्र जीने के लिए नीरव जिया ही क्यों?
पी रहा है रश्मियाँ अपनी दिया ही क्यों?

तुम ग़ज़ल में ज़िंदगी की यों कहीं आते,
बन गये मेरी ग़ज़ल में काफिया ही क्यों?

सह लिया चुपचाप सब अपवाद लेकिन अब,
सोचता हूँ ओठ मैंने-सी लिया ही क्यों?

दो कदम मंज़िल से पहले जो न गिरता तो,
कोसता कोई नहीं मैंने पिया ही क्यों?

ज़िंदगी जीकर चला हूँ मौत जीने अब,
पढ़ रहे तुम पागलों से मरसिया ही क्यों?

रात को दिन पी रहा या रात पीती दिन,
कुछ कहो लेकिन लगाते शर्तिया ही क्यों?

एक उलझा प्रश्न उलझा ही भले रहता,
हल समझ नीरव तुझे पैदा किया ही क्यों?
 
आधार छंद-रजनी
मापनी-गालगागा गालगागा-गालगागा गा