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"तूँ घी के दिया जराबऽ हऽ / उमेश बहादुरपुरी" के अवतरणों में अंतर

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तूँ घी के दिया जराबऽ इऽ ई तो हम सब जानऽ ही।
+
जे हथ बसंत के लावेवाला उहे झेलऽ हथ दंस
गली-गली आउ कूचा-कूचा हमहूँ खाके छानऽ ही।
+
हमहुँ नितरइतूँ हल जो मिल जात हल एक्को अंस
तूँ हखो सूरमा-भोपाली एकरा में कोय शक हे न´्
+
देह पर फट्टल कपड़ा हे, गोड़ में फटल बिआय
तोरा पर अँगुरी उठबे के हमरा सबके हक हे न´्।
+
जेकरा दरद सुनाबऽ ही हम सुनके हे मुसकाय
सरकारी रुपइया अपने-अपन खाता में टानऽ ही।।
+
कउआ मोती चून रहल दाना चुगऽ हे हंस
तूँ घी ....
+
हमहुँ ....
गिरगिट जइसन रंग बदलऽ हऽ डेगे-डेग संग बदलऽ हऽ।
+
परकिरती हमरा मारऽ हे, अधिकारी झुट्ठो झारऽ हे
हो झूठमूठ के तोर लड़इया छने-छन जग बदलऽ हऽ।
+
मंतरी-विधायक हमरा सबके बार-बार दुत्कारऽ हे
डालऽ तू चेहरा पर नकाबऽ पर हम सबके पहचानऽ ही।।
+
जेकरा तर कृष्ण समझके जाहूँ उहे बनऽ हे कंस
तूँ घी ...
+
हमहुँ ....
जब जान देबे के बेरी आबे हमनी के मुड़ी कटाबऽ हऽ।
+
हमरा लेहे सुक्खल रोटी ऊ खा हथ भुँज्जल काजू
एयरकंडीशन में बैठके गाँड़ से सटाबऽ हऽ।
+
हमर बोट से राजा हे ऊ आझो हम ही उहे राजू
तोर तेजी के की कहना? ई त हम-सब जानऽ ही।।
+
हम काशी के कलुआ डोम ऊ मालिक रघुवंश
तूँ घी ....
+
हमहुँ ....
हम्मर केहू सुने न सुने पर तोहर तो सब सुनबे करतो।
+
देखेके हो राम-राज त, चलऽ विधायक-निवास में
हमरा न´् नेनुआँ हे नेमान तोरा हीं कद्दू फरबे करतो।
+
बन ठन छुपल हे तस्कर, गुंडा खादी के लीवास में
तूँ खुद के समझऽ तीसमार खाँ पर हम न´् तोरा रानऽ ही।।
+
उहे राम के हमहुँ पुजूँ तइयो बढ़े संस
तूँ घी ....
+
हमहुँ ....
हम्मर घर में सूखा-दहाड़ कभिओ टूटे दुख के पहाड़।
+
उनखा लेहे रोज दिवाली, ईद आउ बकरीद
तोहर बबुआ छुट्टा घूमे जइसे बिन फाहा के साँढ़।
+
बेटा हो तो ऐसन होय जे देश ले होवे शहीद
बने ले तोरा जइसन हम कभिओ न´् मन में ठानऽ ही।।
+
पूत कपूत से अच्छा रहे ले चाहम हम निरवंश
तूँ घी ....
+
हमहुँ ....
तूँ की जानबऽ हम्मर दुख? तोरा चाही बस सूखे-सूख।
+
मक्कारी ऐय्याश के भरल हो तोहरा में बस भूख।
+
तूँ बैठल मउज उड़ाब हऽ हम खून-पसीना सानऽ ही।।
+
तूँ घी ....
+
मगही के दशा बदले बदले तोर दशा बदलबे करतै।
+
स्वर्ण झूला पर झूल-झूल के तोहरा मन मचलबे करतै।
+
तोर चाल-ढाल के खिस्सा हम सगरे बखानऽ ही।।
+
तूँ घी ....
+
तूँ कहलाबऽ हऽ भाषाविद ई त तोहर बड़गर हे जिद।
+
चलऽ हे तोहरे छत्र-छाया में ई धरती अउ उसँसे हिंद।
+
ई युग के हा पुरोधा तूँ इहे ले हम-सब कानऽ ही।।
+
तूँ घी ....
+
  
 
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13:30, 13 मार्च 2019 के समय का अवतरण

जे हथ बसंत के लावेवाला उहे झेलऽ हथ दंस
हमहुँ नितरइतूँ हल जो मिल जात हल एक्को अंस
देह पर फट्टल कपड़ा हे, गोड़ में फटल बिआय
जेकरा दरद सुनाबऽ ही हम सुनके हे मुसकाय
कउआ मोती चून रहल दाना चुगऽ हे हंस
हमहुँ ....
परकिरती हमरा मारऽ हे, अधिकारी झुट्ठो झारऽ हे
मंतरी-विधायक हमरा सबके बार-बार दुत्कारऽ हे
जेकरा तर कृष्ण समझके जाहूँ उहे बनऽ हे कंस
हमहुँ ....
हमरा लेहे सुक्खल रोटी ऊ खा हथ भुँज्जल काजू
हमर बोट से राजा हे ऊ आझो हम ही उहे राजू
हम काशी के कलुआ डोम ऊ मालिक रघुवंश
हमहुँ ....
देखेके हो राम-राज त, चलऽ विधायक-निवास में
बन ठन छुपल हे तस्कर, गुंडा खादी के लीवास में
उहे राम के हमहुँ पुजूँ तइयो बढ़े न संस
हमहुँ ....
उनखा लेहे रोज दिवाली, ईद आउ बकरीद
बेटा हो तो ऐसन होय जे देश ले होवे शहीद
पूत कपूत से अच्छा रहे ले चाहम हम निरवंश
हमहुँ ....