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"ग़ज़ल / उमेश बहादुरपुरी" के अवतरणों में अंतर

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दुश्मन के हीं हम अप्पन दिलदार बनयबइ।
+
दिल के दरद के दवा तो इहाँ शराब नञ् हे
आब मिलके हमसब नउका बिहार बनयबइ।।
+
पियेवाला के लगे नीक तो खराब नञ् हे
दे रहलइ हें सूरज हमर घर पर दस्तक।
+
केकरो ले ई दुनियाँ नञ् छोड़े के चाही
हम अप्पन किस्मत के चमकदार बनयबइ।।
+
जीये ले ई दुनियाँ में सिरिफ शबाब नञ् हे
आबऽ ....
+
पियेवाला ...
पुरुष हिअइ हमरा में पौरुष छलकऽ हे।
+
अउ भी तो ढेर रिश्ता हे जीये के खातिर
हम तो ई जुआनी के दमदार बनयबइ।।
+
हरेक बात में देबे के इहाँ जबाव नञ् हे
आबऽ ....
+
पियेवाला ....
भाँति-भाँति के फूल खिलल हे ई बगिया में।
+
ढेर फूल हे चमन में खिलल खिलल इहाँ
सब फूलन के एगो हम तो हार बनयबइ।।
+
सुगंध के खातिर सिरिफ गुलाब नञ् हे
आबऽ ....
+
पियेवाला ....
छुआछूत के फेर में हम बड़ दिन रहलूँ।
+
हर हाल में इहाँ तोरा जीये पड़तो जिनगी
मानवता के हम अप्पन सिंगार बनयबइ।।
+
मूड़ी नवा के जीयेवाला आफताब नञ् हे
आबऽ ....
+
पियेवाला ....
सूक्खल नदी में नाव भी हम चला सकऽ ही।
+
हे बेकार के ई जिनगी रफ्तार के बिना
हम तो अप्पन जिनगी के रसदार बनयबइ।।
+
हो सके जे नञ् पूरा ऊ कोय ख्वाब नञ् हे
आबऽ ....
+
पियेवाला ....
मेहनतकश इंसाँ इहाँ कहिओ न´् हारऽ हे।
+
रुक सकऽ हऽ कभिओ नञ् तूँ मंजिल के पहिले
धरम-करम के हम तो अप्पन यार बनयबइ।।
+
जेकर जवाब मिल सकऽ हे ऊ लाजबाब नञ् हे
आबऽ ....
+
पियेवाला ....
हम इतिहाँस पढ़ऽ ही न´् इतिहाँस बनाबऽ ही।
+
हम अप्पन सूबा के सदाबहार बनयबइ।।
+
आबऽ ....
+
  
 
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15:06, 13 मार्च 2019 के समय का अवतरण

दिल के दरद के दवा तो इहाँ शराब नञ् हे
पियेवाला के लगे नीक तो खराब नञ् हे
केकरो ले ई दुनियाँ नञ् छोड़े के चाही
जीये ले ई दुनियाँ में सिरिफ शबाब नञ् हे
पियेवाला ...
अउ भी तो ढेर रिश्ता हे जीये के खातिर
हरेक बात में देबे के इहाँ जबाव नञ् हे
पियेवाला ....
ढेर फूल हे चमन में खिलल खिलल इहाँ
सुगंध के खातिर सिरिफ गुलाब नञ् हे
पियेवाला ....
हर हाल में इहाँ तोरा जीये पड़तो जिनगी
मूड़ी नवा के जीयेवाला आफताब नञ् हे
पियेवाला ....
हे बेकार के ई जिनगी रफ्तार के बिना
हो सके जे नञ् पूरा ऊ कोय ख्वाब नञ् हे
पियेवाला ....
रुक सकऽ हऽ कभिओ नञ् तूँ मंजिल के पहिले
जेकर जवाब मिल सकऽ हे ऊ लाजबाब नञ् हे
पियेवाला ....