"चिट्ठियाँ / विजयशंकर चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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आती थीं ऐसी चिट्ठियाँ | आती थीं ऐसी चिट्ठियाँ | ||
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जिनमें बाद समाचार होते थे सुखद | जिनमें बाद समाचार होते थे सुखद | ||
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अपनी कुशलता की कामना करते हुए | अपनी कुशलता की कामना करते हुए | ||
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होती थीं हमारी कुशलता की कामनाएँ। | होती थीं हमारी कुशलता की कामनाएँ। | ||
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गाँव-घर, टोला-पडोसी | गाँव-घर, टोला-पडोसी | ||
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सब चले आते थे बतियाते चिट्ठियों में | सब चले आते थे बतियाते चिट्ठियों में | ||
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आटा गूंधती पडोसिनों के साथ आती थी माँ | आटा गूंधती पडोसिनों के साथ आती थी माँ | ||
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बहन की छाया मेरी मेज़ पर बैठ जाती थी निःशब्द। | बहन की छाया मेरी मेज़ पर बैठ जाती थी निःशब्द। | ||
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कलश धरे माथ ट्रैक्टर की पूजा करती आती थीं किसानिनें | कलश धरे माथ ट्रैक्टर की पूजा करती आती थीं किसानिनें | ||
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हल और बैलों के टूटते रिश्ते चले आते थे। | हल और बैलों के टूटते रिश्ते चले आते थे। | ||
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चिट्ठियाँ बताती थीं | चिट्ठियाँ बताती थीं | ||
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कि कैसे किराने की दूकान में घुस आया है मुम्बई | कि कैसे किराने की दूकान में घुस आया है मुम्बई | ||
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नशे के लिए अब कहीं जाना नहीं पड़ता अलबत्ता, | नशे के लिए अब कहीं जाना नहीं पड़ता अलबत्ता, | ||
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अस्पताल इतनी दूर है जैसे दिल्ली-कलकत्ता। | अस्पताल इतनी दूर है जैसे दिल्ली-कलकत्ता। | ||
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मुफ़्त मोतियाबिंदु शिविर नहीं पहुँच पाई बूढ़ी काकी | मुफ़्त मोतियाबिंदु शिविर नहीं पहुँच पाई बूढ़ी काकी | ||
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यही कोफ़्त है, वरना क्या लिखने में अब धरा है बाक़ी। | यही कोफ़्त है, वरना क्या लिखने में अब धरा है बाक़ी। | ||
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पता चल जाता था कि | पता चल जाता था कि | ||
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किसके खलिहान में आग लगा दी किसने | किसके खलिहान में आग लगा दी किसने | ||
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किसने किसका घर बना दिया खंडहर | किसने किसका घर बना दिया खंडहर | ||
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किसी बहन निकल गई किसके साथ | किसी बहन निकल गई किसके साथ | ||
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अबकी किसकी बेटी के पीले हुए हाथ | अबकी किसकी बेटी के पीले हुए हाथ | ||
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किसने बेच दिया पुरखों का खेत जुए के चक्कर में | किसने बेच दिया पुरखों का खेत जुए के चक्कर में | ||
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कौन फौज़ से तीन माह की छुट्टी ले बैठा है घर में। | कौन फौज़ से तीन माह की छुट्टी ले बैठा है घर में। | ||
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चिट्ठियाँ खोल देती थीं पोल सरपंची के चुनाव की | चिट्ठियाँ खोल देती थीं पोल सरपंची के चुनाव की | ||
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फर्जी डॉक्टर की दवा से मरी विधवा ठकुराइन की। | फर्जी डॉक्टर की दवा से मरी विधवा ठकुराइन की। | ||
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बरसों से अधूरी पड़ी सड़क परियोजना की | बरसों से अधूरी पड़ी सड़क परियोजना की | ||
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बहू को जला मारने की पारिवारिक योजना की। | बहू को जला मारने की पारिवारिक योजना की। | ||
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लेकिन कुछ चिट्ठियाँ आती थीं हाथों-हाथ | लेकिन कुछ चिट्ठियाँ आती थीं हाथों-हाथ | ||
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लाती थीं गाँव से उखड़े पाँव | लाती थीं गाँव से उखड़े पाँव | ||
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उनमें थोड़ा लिखा समझना होता था बहुत। | उनमें थोड़ा लिखा समझना होता था बहुत। | ||
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इधर एक अरसे से नहीं आई कोई चिट्ठी | इधर एक अरसे से नहीं आई कोई चिट्ठी | ||
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मेरे पते पर मेरे नाम। | मेरे पते पर मेरे नाम। | ||
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क्या पता लोग लिखते हों और फाड़ देते हों | क्या पता लोग लिखते हों और फाड़ देते हों | ||
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क्योंकि मैं आज तक किसी को नहीं दिलवा पाया | क्योंकि मैं आज तक किसी को नहीं दिलवा पाया | ||
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एक वाचमैन तक का काम। | एक वाचमैन तक का काम। | ||
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20:01, 9 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
आती थीं ऐसी चिट्ठियाँ
जिनमें बाद समाचार होते थे सुखद
अपनी कुशलता की कामना करते हुए
होती थीं हमारी कुशलता की कामनाएँ।
गाँव-घर, टोला-पडोसी
सब चले आते थे बतियाते चिट्ठियों में
आटा गूंधती पडोसिनों के साथ आती थी माँ
बहन की छाया मेरी मेज़ पर बैठ जाती थी निःशब्द।
कलश धरे माथ ट्रैक्टर की पूजा करती आती थीं किसानिनें
हल और बैलों के टूटते रिश्ते चले आते थे।
चिट्ठियाँ बताती थीं
कि कैसे किराने की दूकान में घुस आया है मुम्बई
नशे के लिए अब कहीं जाना नहीं पड़ता अलबत्ता,
अस्पताल इतनी दूर है जैसे दिल्ली-कलकत्ता।
मुफ़्त मोतियाबिंदु शिविर नहीं पहुँच पाई बूढ़ी काकी
यही कोफ़्त है, वरना क्या लिखने में अब धरा है बाक़ी।
पता चल जाता था कि
किसके खलिहान में आग लगा दी किसने
किसने किसका घर बना दिया खंडहर
किसी बहन निकल गई किसके साथ
अबकी किसकी बेटी के पीले हुए हाथ
किसने बेच दिया पुरखों का खेत जुए के चक्कर में
कौन फौज़ से तीन माह की छुट्टी ले बैठा है घर में।
चिट्ठियाँ खोल देती थीं पोल सरपंची के चुनाव की
फर्जी डॉक्टर की दवा से मरी विधवा ठकुराइन की।
बरसों से अधूरी पड़ी सड़क परियोजना की
बहू को जला मारने की पारिवारिक योजना की।
लेकिन कुछ चिट्ठियाँ आती थीं हाथों-हाथ
लाती थीं गाँव से उखड़े पाँव
उनमें थोड़ा लिखा समझना होता था बहुत।
इधर एक अरसे से नहीं आई कोई चिट्ठी
मेरे पते पर मेरे नाम।
क्या पता लोग लिखते हों और फाड़ देते हों
क्योंकि मैं आज तक किसी को नहीं दिलवा पाया
एक वाचमैन तक का काम।