"हिसाब बराबरी का / बाल गंगाधर 'बागी'" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाल गंगाधर 'बागी' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
हजारों साल से, कुछ लोगों ने मिटाना चाहा | हजारों साल से, कुछ लोगों ने मिटाना चाहा | ||
मगर मैं ज़िन्दा हूँ, भारत के फसाने में | मगर मैं ज़िन्दा हूँ, भारत के फसाने में | ||
+ | |||
दलितों को मान मिला है, किस जमाने में? | दलितों को मान मिला है, किस जमाने में? | ||
कोई बताये इनके वेदों और पुराणों में? | कोई बताये इनके वेदों और पुराणों में? | ||
क्या रामायण की रचना किसी दलित ने की? | क्या रामायण की रचना किसी दलित ने की? | ||
गर किया है तो उसे भेजो पागलखाने में | गर किया है तो उसे भेजो पागलखाने में | ||
+ | |||
भगवान तेरा कुसूर नहीं है, मुझे मिटाने में | भगवान तेरा कुसूर नहीं है, मुझे मिटाने में | ||
तेरा वजूद है झूठा, सभी फ़साने में | तेरा वजूद है झूठा, सभी फ़साने में | ||
पंक्ति 32: | पंक्ति 34: | ||
नारियल के पेड़ पे, कातिल की गर्दन होगी | नारियल के पेड़ पे, कातिल की गर्दन होगी | ||
पेड़ ऐसे उगेंगे अब, शम्बूक के हर बाग़ानों में | पेड़ ऐसे उगेंगे अब, शम्बूक के हर बाग़ानों में | ||
− | ‘बाग़ी’ गर तुम | + | ‘बाग़ी’ गर तुम बागबां बनोगे, उस चमन के लिये? |
− | हम बग़ावत करेंगे, उस चमन के | + | हम बग़ावत करेंगे, उस चमन के आशियाने में |
</poem> | </poem> |
23:24, 20 अगस्त 2019 के समय का अवतरण
ज़माना मेरी नज़र से गुजरा, मैं ज़माने में
मगर अछूत रहा, अपने ही घराने में
हजारों साल से, कुछ लोगों ने मिटाना चाहा
मगर मैं ज़िन्दा हूँ, भारत के फसाने में
दलितों को मान मिला है, किस जमाने में?
कोई बताये इनके वेदों और पुराणों में?
क्या रामायण की रचना किसी दलित ने की?
गर किया है तो उसे भेजो पागलखाने में
भगवान तेरा कुसूर नहीं है, मुझे मिटाने में
तेरा वजूद है झूठा, सभी फ़साने में
मेरी बर्बादियां तूने क्यों कर देखी?
गर तू था, तो दिखा क्यों नहीं जमान में?
मनु तेरा खून पीने में, मुझे कुछ हर्ज नहीं
हमने तो सड़ा माँस भी खाया है, एक जमाने में
हमें नीचता का दंश, मिला है तुमसे क्यों?
मनु मारेंगे तुम्हें, जला के मशालों से
मेरे भाई का अंगूठा काटने वाला द्रोणा
हम सब ज़िन्दा हैं, एकल्व्य के उसी घराने में
और यह मत समझना कि हम तुम्हें भूल गये
हम तुम्हें मारेंगे, एकलव्य के ही बाणों से
नारियल के पेड़ पे, कातिल की गर्दन होगी
पेड़ ऐसे उगेंगे अब, शम्बूक के हर बाग़ानों में
‘बाग़ी’ गर तुम बागबां बनोगे, उस चमन के लिये?
हम बग़ावत करेंगे, उस चमन के आशियाने में