भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मन सेॅ पढ़ोॅ / ब्रह्मदेव कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रह्मदेव कुमार |अनुवादक= }} {{KKCatAngikaRac...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
  
 
कौनें सिखाबै लिखै-पढ़ै लेॅ
 
कौनें सिखाबै लिखै-पढ़ै लेॅ
आरो मीट्ठोॅ-मीट्ठोॅ बात हो।।
+
आरो मीट्ठोॅ-मीट्ठोॅ बात हो।
  
 
साक्षरता केन्द्र सेॅ मिललै, लिखै लेॅ हमरा सिलौठ हो
 
साक्षरता केन्द्र सेॅ मिललै, लिखै लेॅ हमरा सिलौठ हो
 
भैया हो, पढ़ै लेॅ हमरा किताब हो।
 
भैया हो, पढ़ै लेॅ हमरा किताब हो।
एमटी, भीटी पढ़ै-लिखै लेॅ, आरो सिखाबै मिट्ठोॅ बात हो।।
+
एमटी, भीटी पढ़ै-लिखै लेॅ, आरो सिखाबै मिट्ठोॅ बात हो।
  
 
‘क’ से करमा, ‘ग’ से गैया, ‘ब’ से बकरी बताबै।
 
‘क’ से करमा, ‘ग’ से गैया, ‘ब’ से बकरी बताबै।
रूपया-पैसा जोड़ी-तोड़ी, हिसाब करै लेॅ सिखाबै।।
+
रूपया-पैसा जोड़ी-तोड़ी, हिसाब करै लेॅ सिखाबै।
  
 
जिनगी के अंधियारा हो भैया, पढ़ी-लिखी दूर भगैयोॅ।
 
जिनगी के अंधियारा हो भैया, पढ़ी-लिखी दूर भगैयोॅ।
पाठ के सीख सीखी केॅ भैया, सुन्दर भविष्य बनैयोॅ।।
+
पाठ के सीख सीखी केॅ भैया, सुन्दर भविष्य बनैयोॅ।
  
 
भैया, मैया आरो बहिनियाँ, मिली-जुली करै किलोल।
 
भैया, मैया आरो बहिनियाँ, मिली-जुली करै किलोल।
पढ़ी-लिखी केॅ अचरज करै, साक्षरता के जय बोल।।
+
पढ़ी-लिखी केॅ अचरज करै, साक्षरता के जय बोल।
 
</poem>
 
</poem>

23:27, 2 मई 2019 के समय का अवतरण

मन सेॅ पढ़ोॅ किताब हो भैया, मन सेॅ पढ़ोॅ।
कहाँ सेॅ मिललै लिखै लेॅ सिलौठ हो
आरोॅ पढ़ै लेॅ किताब हो।

कौनें सिखाबै लिखै-पढ़ै लेॅ
आरो मीट्ठोॅ-मीट्ठोॅ बात हो।

साक्षरता केन्द्र सेॅ मिललै, लिखै लेॅ हमरा सिलौठ हो
भैया हो, पढ़ै लेॅ हमरा किताब हो।
एमटी, भीटी पढ़ै-लिखै लेॅ, आरो सिखाबै मिट्ठोॅ बात हो।

‘क’ से करमा, ‘ग’ से गैया, ‘ब’ से बकरी बताबै।
रूपया-पैसा जोड़ी-तोड़ी, हिसाब करै लेॅ सिखाबै।

जिनगी के अंधियारा हो भैया, पढ़ी-लिखी दूर भगैयोॅ।
पाठ के सीख सीखी केॅ भैया, सुन्दर भविष्य बनैयोॅ।

भैया, मैया आरो बहिनियाँ, मिली-जुली करै किलोल।
पढ़ी-लिखी केॅ अचरज करै, साक्षरता के जय बोल।