भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जागे सारी रात / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
{{KKCatDoha}}
 
{{KKCatDoha}}
 
 
<poem>
 
<poem>
  
1
+
31
 
‘पूछेंगे’ हमसे कहा, ‘मन के कई सवाल।’
 
‘पूछेंगे’ हमसे कहा, ‘मन के कई सवाल।’
 
पूछा फिर भी कुछ नहीं, मन में यही मलाल।।
 
पूछा फिर भी कुछ नहीं, मन में यही मलाल।।
2
+
32
 
  द्वार -द्वार हम तो गए, बुझे दुखों की आग।
 
  द्वार -द्वार हम तो गए, बुझे दुखों की आग।
 
हाथ जले तन भी जला, लगे हमीं पर दाग।।
 
हाथ जले तन भी जला, लगे हमीं पर दाग।।
3
+
33
 
दर्द लिये जागे रहे ,हम तो सारी रात।
 
दर्द लिये जागे रहे ,हम तो सारी रात।
 
उनकी चुप्पी ही रही ,कही न कोई बात।
 
उनकी चुप्पी ही रही ,कही न कोई बात।
4
+
34
 
करना है तो कीजिए,लाख बार धिक्कार।
 
करना है तो कीजिए,लाख बार धिक्कार।
 
इतना अपने हाथ में ,आएँगे हम द्वार।।
 
इतना अपने हाथ में ,आएँगे हम द्वार।।
5
+
35
 
दुख अपने दे दो हमें, माँगी इतनी भीख।
 
दुख अपने दे दो हमें, माँगी इतनी भीख।
 
द्वार भोर तक बन्द थे,हम क्या देते सीख।।
 
द्वार भोर तक बन्द थे,हम क्या देते सीख।।
6
+
36
 
माफ़ी दे देना हमें, हम तो सिर्फ फ़क़ीर।
 
माफ़ी दे देना हमें, हम तो सिर्फ फ़क़ीर।
 
कुछ न किसी को दे सके.ऐसी है तक़दीर।।
 
कुछ न किसी को दे सके.ऐसी है तक़दीर।।
7
+
37
 
जाने कैसे खुभ गई,दिल में तिरछी फाँस।
 
जाने कैसे खुभ गई,दिल में तिरछी फाँस।
 
प्राण कण्ठ पर आ गए, रुकने  को है साँस।।
 
प्राण कण्ठ पर आ गए, रुकने  को है साँस।।
8
+
38
 
जब जागोगे भोर में ,खोलोगे तुम द्वार।
 
जब जागोगे भोर में ,खोलोगे तुम द्वार।
 
देहरी तक भीगी मिले, सिसकी, आँसू -धार।।
 
देहरी तक भीगी मिले, सिसकी, आँसू -धार।।
9
+
39
 
सबके अपने काफिले,सबका अपना शोर।
 
सबके अपने काफिले,सबका अपना शोर।
 
निपट अकेले हम चले,अस्ताचल की ओर।
 
निपट अकेले हम चले,अस्ताचल की ओर।
10
+
40
 
दंड न इतना दीजिए,मुझको अरे हुज़ूर!
 
दंड न इतना दीजिए,मुझको अरे हुज़ूर!
 
छोड़ जगत को चल पडूँ ,होकर मैं मजबूर।।
 
छोड़ जगत को चल पडूँ ,होकर मैं मजबूर।।
11
+
41
 
बहुत हुए अपराध हैं,बहुत किए हैं पाप।
 
बहुत हुए अपराध हैं,बहुत किए हैं पाप।
 
माफ़ करो अब तो मुझे,मैं केवल अभिशाप।।
 
माफ़ करो अब तो मुझे,मैं केवल अभिशाप।।
12
+
42
 
आया था मैं द्वार पर,हर लूँ तेरी पीर।
 
आया था मैं द्वार पर,हर लूँ तेरी पीर।
 
आएगा अब ना कभी,द्वारे मूर्ख फ़क़ीर।
 
आएगा अब ना कभी,द्वारे मूर्ख फ़क़ीर।
13
+
43
 
क्रोध लेश भर भी नहीं , ना मन में सन्ताप।
 
क्रोध लेश भर भी नहीं , ना मन में सन्ताप।
 
उसको कुछ कब चाहिए,जिसके केवल आप।
 
उसको कुछ कब चाहिए,जिसके केवल आप।
14
+
44
 
  झोली भर-भर कर मिला,मुझको जग में प्यार।
 
  झोली भर-भर कर मिला,मुझको जग में प्यार।
 
सबसे ऊपर तुम मिले,इस जग का उपहार।
 
सबसे ऊपर तुम मिले,इस जग का उपहार।
15
+
45
 
बस इतनी -सी कामना,हर पल रहना साथ।
 
बस इतनी -सी कामना,हर पल रहना साथ।
 
दोष हमारे भूलकर,सदा थामना हाथ।।
 
दोष हमारे भूलकर,सदा थामना हाथ।।
  
 
</poem>
 
</poem>

20:09, 14 मई 2019 के समय का अवतरण


31
‘पूछेंगे’ हमसे कहा, ‘मन के कई सवाल।’
पूछा फिर भी कुछ नहीं, मन में यही मलाल।।
32
 द्वार -द्वार हम तो गए, बुझे दुखों की आग।
हाथ जले तन भी जला, लगे हमीं पर दाग।।
33
दर्द लिये जागे रहे ,हम तो सारी रात।
उनकी चुप्पी ही रही ,कही न कोई बात।
34
करना है तो कीजिए,लाख बार धिक्कार।
इतना अपने हाथ में ,आएँगे हम द्वार।।
35
दुख अपने दे दो हमें, माँगी इतनी भीख।
द्वार भोर तक बन्द थे,हम क्या देते सीख।।
36
माफ़ी दे देना हमें, हम तो सिर्फ फ़क़ीर।
कुछ न किसी को दे सके.ऐसी है तक़दीर।।
37
जाने कैसे खुभ गई,दिल में तिरछी फाँस।
प्राण कण्ठ पर आ गए, रुकने को है साँस।।
38
जब जागोगे भोर में ,खोलोगे तुम द्वार।
देहरी तक भीगी मिले, सिसकी, आँसू -धार।।
39
सबके अपने काफिले,सबका अपना शोर।
निपट अकेले हम चले,अस्ताचल की ओर।
40
दंड न इतना दीजिए,मुझको अरे हुज़ूर!
छोड़ जगत को चल पडूँ ,होकर मैं मजबूर।।
41
बहुत हुए अपराध हैं,बहुत किए हैं पाप।
माफ़ करो अब तो मुझे,मैं केवल अभिशाप।।
42
आया था मैं द्वार पर,हर लूँ तेरी पीर।
आएगा अब ना कभी,द्वारे मूर्ख फ़क़ीर।
43
क्रोध लेश भर भी नहीं , ना मन में सन्ताप।
उसको कुछ कब चाहिए,जिसके केवल आप।
44
 झोली भर-भर कर मिला,मुझको जग में प्यार।
सबसे ऊपर तुम मिले,इस जग का उपहार।
45
बस इतनी -सी कामना,हर पल रहना साथ।
दोष हमारे भूलकर,सदा थामना हाथ।।