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"प्रार्थना / संतरण / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

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पर, विजय की आस मत छीनो<br>
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प्रीत के हर प्रिय चरण पर वंचना दो<br>
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मृग-तृषा-सी वंचना दो<br>
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राग का संगीत मत छीनो,<br>
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सुधा-धर कंठ से<br>
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कल्पनाओं के सहारे<br>
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विरस यौवन बिता लेंगे,<br>
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विरस यौवन बिता लेंगे,  
हर सजल सावन बिता लेंगे !<br>
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हर सजल सावन बिता लेंगे!  
अकेला अनमना यौवन बिता लेंगे !<br>
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अकेला अनमना यौवन बिता लेंगे!  
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14:53, 30 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

अँधेरा दो
पराजय का अँधेरा दो
निराशा का सघन-गहरा अँधेरा दो
पर, विजय की आस मत छीनो
सुबह की साँस मत छीनो,
नये संसार के
सुख-साध्य सपनों के सहारे
करुण जीवन बिता लेंगे!
अभावों से भरा जीवन बिता लेंगे!

वंचना दो
प्रीत के हर प्रिय चरण पर वंचना दो
मृग-तृषा-सी वंचना दो
पर, अधर के गीत मत छीनो
राग का संगीत मत छीनो,
सुधा-धर कंठ से
उर भावना-विश्वास धरती पर
कल्पनाओं के सहारे
विरस यौवन बिता लेंगे,
हर सजल सावन बिता लेंगे!
अकेला अनमना यौवन बिता लेंगे!