"समय पथ पर काल चक्र / ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति" के अवतरणों में अंतर
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19:23, 14 अगस्त 2008 के समय का अवतरण
केवल मात्र अपनी ही चिद क्रिया मैं लवलीन,
अन्य सारी क्रियाओं का निपट एक मात्र साक्षी ,
ब्रह्माण्ड की तहों को तराशती भेदती दृष्टि लिए,
समय पथ पर अनवरत निःशब्द कोई चल रहा ,
क्षण की इस अनिर्वार गति के अंधड़ में ,
क्षण क्षण के भीतर और भीतर कोई चल रहा .
अटूट, अविरल क्षण शृंखला ने पूरा ब्रह्माण्ड बाँधा,
जगती का कर्म काण्ड बांधा ,
कौन जाने ब्रह्मा ने इसे साधा,
या ब्रह्म को भी इसने ही बांधा.
क्षण सत्ता के सब ही दास हैं.
गीता में कृष्ण " अहम् कालोअस्मि " कहते हैं,
पर काल-गीता पर काल
"अहम् ब्रम्होअस्मि" नहीं कहता.
अथवा
ब्रह्म का एक पर्यायी संबोधन त्रिकालदर्शी तो है
पर समय का पर्यायी ब्रह्म दर्शी नहीं.
अतः काल ब्रह्म से पहले की रचना है .
दृष्टा से प्रथम दृश्य की सरंचना है.
काल चक्र स्तंभित होकर महाकालेश्वर
प्रभु की प्रतीक्षा में है,
कदाचित काल भी कैवल्य को व्याकुल है.
दिशाओं के छोरों के आर पार जाकर ,
परिक्रमा करते जाज्वल्यमान काल -चक्र
एक भार विहीन अनाहत
सनातन काल-चक्र .
कितने ही इतिहास ,
कितने ही भूगोल ,
काल -गर्भित हैं.
ब्रह्मा -ब्रह्माण्ड को कैसे
और किसने जाना ?
एक मात्र समय का सार ही सार गर्भित है .
क्योंकि केवल समय की ही
सम (समान ) अय ( गति ) है .
चितवन की प्रार्थी