भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सरस्वती वंदना / मनोज झा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <po...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
<poem>
 
<poem>
 
जय सरस्वती जय शारदे,  
 
जय सरस्वती जय शारदे,  
माँ भगवती मुझे उबार दे।
+
माँ भगवती, मुझे उबार दे ।
  
है घन घमंड से घिरा ज्ञान,  
+
है घन घमण्ड से घिरा ज्ञान,  
माँ कर दे मेरा परित्राण।
+
माँ, कर दे मेरा परित्राण ।
  
 
कहते तुमको जगतीख्याता,  
 
कहते तुमको जगतीख्याता,  
तू रख ले मेरा स्वाभिमान।
+
तू रख ले मेरा स्वाभिमान ।
  
हे बुधमाता! मुझे प्यार दे,  
+
हे बुधमाता ! मुझे प्यार दे,  
माँ भगवती मुझे उबार दे॥ जय...॥
+
माँ भगवती, मुझे उबार दे ॥ जय...॥
  
जीवन में हैं कुंठित विचार,  
+
जीवन में हैं कुण्ठित विचार,  
जीने के नहीँ हैँ तत्व सार।
+
जीने के नहीँ हैँ तत्व सार ।
  
 
हे वरदायिनी तू एक बार
 
हे वरदायिनी तू एक बार
बन जा मेरे जीवन आधार।
+
बन जा मेरा जीवन आधार ।
  
जीवन में नया बहार दे,  
+
जीवन में नई बहार दे,  
हे भारती मुझको तार दे॥ जय...॥
+
हे भारती, मुझको तार दे॥ जय...॥
  
हे भुवनेश्वरी! हे चन्द्रकांति!  
+
हे भुवनेश्वरी ! हे चन्द्रकान्ति !  
हे वागेश्वरी! भरदे तू शांति।
+
हे वागेश्वरी ! भर दे तू शान्ति ।
  
 
मैं एक पग भी चल नहीं सकता,  
 
मैं एक पग भी चल नहीं सकता,  
बिन तेरे हे कुमुदीप्रोक्ता!  
+
बिन तेरे हे कुमुदीप्रोक्ता !  
  
हंसवाहिनी मुझे सुधार दे,  
+
हंसवाहिनी ! मुझे सुधार दे,  
ब्रह्मचारिणी मुझे सँवार दे॥ जय ...॥
+
ब्रह्मचारिणी ! मुझे सँवार दे ॥ जय ...॥
 
</poem>
 
</poem>

17:38, 23 जुलाई 2019 के समय का अवतरण

जय सरस्वती जय शारदे,
माँ भगवती, मुझे उबार दे ।

है घन घमण्ड से घिरा ज्ञान,
माँ, कर दे मेरा परित्राण ।

कहते तुमको जगतीख्याता,
तू रख ले मेरा स्वाभिमान ।

हे बुधमाता ! मुझे प्यार दे,
माँ भगवती, मुझे उबार दे ॥ जय...॥

जीवन में हैं कुण्ठित विचार,
जीने के नहीँ हैँ तत्व सार ।

हे वरदायिनी तू एक बार
बन जा मेरा जीवन आधार ।

जीवन में नई बहार दे,
हे भारती, मुझको तार दे॥ जय...॥

हे भुवनेश्वरी ! हे चन्द्रकान्ति !
हे वागेश्वरी ! भर दे तू शान्ति ।

मैं एक पग भी चल नहीं सकता,
बिन तेरे हे कुमुदीप्रोक्ता !

हंसवाहिनी ! मुझे सुधार दे,
ब्रह्मचारिणी ! मुझे सँवार दे ॥ जय ...॥