"सुबह की तस्वीरें-3 / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर
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::सुबह भूले और बिसरे गीत जगते। | ::सुबह भूले और बिसरे गीत जगते। | ||
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रास्ते में मिल गए जो, | रास्ते में मिल गए जो, | ||
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शुष्क मन की रेत पर ही खिल गए जो, | शुष्क मन की रेत पर ही खिल गए जो, | ||
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साँस के पथ से समाए प्राण में जो, | साँस के पथ से समाए प्राण में जो, | ||
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स्वर बने- | स्वर बने- | ||
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औ’ हो गए इस ज़िंदगी के त्राण-से जो-- | औ’ हो गए इस ज़िंदगी के त्राण-से जो-- | ||
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वही मनचाहे, सजीले राग | वही मनचाहे, सजीले राग | ||
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उठते जाग: | उठते जाग: | ||
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प्रातः के पवन में सुन खगों के बोल, | प्रातः के पवन में सुन खगों के बोल, | ||
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या फिर सूंघकर ख़ुशबू गुलाबों की बड़ी अनमोल । | या फिर सूंघकर ख़ुशबू गुलाबों की बड़ी अनमोल । | ||
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चांद-तारों की बिदा के आँसुओं की सजल बेला... | चांद-तारों की बिदा के आँसुओं की सजल बेला... | ||
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नील नभ पर सिर्फ़ है सूरज अकेला | नील नभ पर सिर्फ़ है सूरज अकेला | ||
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और धरती पर अगिनती मनुज | और धरती पर अगिनती मनुज | ||
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अलसाए, उनींदे, ऊंघते, सोते, बदलते करवटें, या | अलसाए, उनींदे, ऊंघते, सोते, बदलते करवटें, या | ||
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उठे, बैठे, टहलते-- ज्यों नींद के बादल फटें, | उठे, बैठे, टहलते-- ज्यों नींद के बादल फटें, | ||
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या कर रहे होते प्रतीक्षा | या कर रहे होते प्रतीक्षा | ||
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सामने के पम्प से भरकर घड़े लड़के हटें। | सामने के पम्प से भरकर घड़े लड़के हटें। | ||
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उस तरफ़ के किसी घर से धुँआ उठता... | उस तरफ़ के किसी घर से धुँआ उठता... | ||
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चीख़ते बच्चे, सुलगती लकड़ियाँ, बरतन खड़कते । | चीख़ते बच्चे, सुलगती लकड़ियाँ, बरतन खड़कते । | ||
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मिलों के भोंपू चिघरते । | मिलों के भोंपू चिघरते । | ||
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खलबली मचती छतों-खपरैल-छ्प्पर के तले । | खलबली मचती छतों-खपरैल-छ्प्पर के तले । | ||
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रेल, मोटर, ट्राम, इक्के बांधकर ताँता चले। | रेल, मोटर, ट्राम, इक्के बांधकर ताँता चले। | ||
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जागते सब... | जागते सब... | ||
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जागता वह मन कि जो मोहित हुआ-सा | जागता वह मन कि जो मोहित हुआ-सा | ||
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भटकता निशि के अंधेरे में, अजानी घाटियों में, | भटकता निशि के अंधेरे में, अजानी घाटियों में, | ||
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मुक्त नभ में, | मुक्त नभ में, | ||
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तारकों के बीच, परियों के सदन में: | तारकों के बीच, परियों के सदन में: | ||
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खोजता सपने, सजल अनुभूति के छन। | खोजता सपने, सजल अनुभूति के छन। | ||
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जागता वह मन । | जागता वह मन । | ||
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प्रभाती के स्वरों से, | प्रभाती के स्वरों से, | ||
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परस करती ज्योति के स्वर्णिम करों से, | परस करती ज्योति के स्वर्णिम करों से, | ||
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देखता सब ओर फैला हुआ जीवन , | देखता सब ओर फैला हुआ जीवन , | ||
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साँस-सा लेता हुआ प्रत्येक रजकन, | साँस-सा लेता हुआ प्रत्येक रजकन, | ||
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और उसको सभी मन के मीत लगते, | और उसको सभी मन के मीत लगते, | ||
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जबकि भूले और बिसरे गीत जगते। | जबकि भूले और बिसरे गीत जगते। | ||
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:: सुबह भूले और बिसरे गीत जगते । | :: सुबह भूले और बिसरे गीत जगते । | ||
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19:38, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
सुबह भूले और बिसरे गीत जगते।
रास्ते में मिल गए जो,
शुष्क मन की रेत पर ही खिल गए जो,
साँस के पथ से समाए प्राण में जो,
स्वर बने-
औ’ हो गए इस ज़िंदगी के त्राण-से जो--
वही मनचाहे, सजीले राग
उठते जाग:
प्रातः के पवन में सुन खगों के बोल,
या फिर सूंघकर ख़ुशबू गुलाबों की बड़ी अनमोल ।
चांद-तारों की बिदा के आँसुओं की सजल बेला...
नील नभ पर सिर्फ़ है सूरज अकेला
और धरती पर अगिनती मनुज
अलसाए, उनींदे, ऊंघते, सोते, बदलते करवटें, या
उठे, बैठे, टहलते-- ज्यों नींद के बादल फटें,
या कर रहे होते प्रतीक्षा
सामने के पम्प से भरकर घड़े लड़के हटें।
उस तरफ़ के किसी घर से धुँआ उठता...
चीख़ते बच्चे, सुलगती लकड़ियाँ, बरतन खड़कते ।
मिलों के भोंपू चिघरते ।
खलबली मचती छतों-खपरैल-छ्प्पर के तले ।
रेल, मोटर, ट्राम, इक्के बांधकर ताँता चले।
जागते सब...
जागता वह मन कि जो मोहित हुआ-सा
भटकता निशि के अंधेरे में, अजानी घाटियों में,
मुक्त नभ में,
तारकों के बीच, परियों के सदन में:
खोजता सपने, सजल अनुभूति के छन।
जागता वह मन ।
प्रभाती के स्वरों से,
परस करती ज्योति के स्वर्णिम करों से,
देखता सब ओर फैला हुआ जीवन ,
साँस-सा लेता हुआ प्रत्येक रजकन,
और उसको सभी मन के मीत लगते,
जबकि भूले और बिसरे गीत जगते।
सुबह भूले और बिसरे गीत जगते ।