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"नैनों से चुए / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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'''मोती दो दमकते''' | '''मोती दो दमकते''' | ||
'''नैनों से चुए।''' | '''नैनों से चुए।''' | ||
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− | + | चाँद जो मेरा | |
− | + | दूर बहुत दूर | |
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+ | घिरे हैं घन | ||
+ | तरसूँ रात दिन | ||
+ | दिखे न चाँद। | ||
+ | 85 | ||
+ | दुग्ध धवल | ||
+ | छिटकी है चंद्रिका | ||
+ | भोली मुस्कान। | ||
+ | 86 | ||
+ | साथी सन्नाटा | ||
+ | जगा है रात -दिन | ||
+ | मूक पहरा। | ||
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03:04, 14 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण
77
बात अधूरी
फोन क्या कट गया,
हुई न पूरी।
78
हारे नहीं थे,
कपट ने छीने थे
सहारे सभी।
79
ओस बनके
आँसू छलक आए-
याद किसी की।
80
खारे नहीं थे,
मादक मधु लगे
आँसू तुम्हारे।
81
तिरते मिले-
भूरे घन गगन
नैनों में तेरे।
82
हथेली लिये
मोती दो दमकते
नैनों से चुए।
83
चाँद जो मेरा
दूर बहुत दूर
मैं मजबूर।
84
घिरे हैं घन
तरसूँ रात दिन
दिखे न चाँद।
85
दुग्ध धवल
छिटकी है चंद्रिका
भोली मुस्कान।
86
साथी सन्नाटा
जगा है रात -दिन
मूक पहरा।