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"नयी ज़िन्दगी / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

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:(रंगमंच पर एक युवक, जिसके जिसके रूखे केशों की लटें मुख के आस-पास गिरी हुई हैं, दर्द भरी आवाज़ में गाता है। मंच पर अँधेरा है, केवल युवक पर पीली-पीली रोशनी पड़ रही है। जैसे ही वह गान प्रारम्भ करता है, पर्दे के पीछे से हल्की-हल्की वाद्य-ध्वनि होती है; जो उसकी रागिनी से मेल खाती हुई है —
  
 
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:    हृदय पर कर रही अधिकार,<br>
 
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:    कि कितनी दूर नव-संसार ? <BR>
 
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बारम्बार जीवन के वही क्षण पा रही है ज़िन्दगी !<br>
 
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:(पर्दे के पीछे से वाद्य-ध्वनि ज़रा कुछ तेज़ हो जाती है और साथ में नारी-स्वर भी उसी लय में सुनायी देने लगता है जो अभी अस्पष्ट और धीमा है। युवक का गान चलता रहता है —
 
:(पर्दे के पीछे से वाद्य-ध्वनि ज़रा कुछ तेज़ हो जाती है और साथ में नारी-स्वर भी उसी लय में सुनायी देने लगता है जो अभी अस्पष्ट और धीमा है। युवक का गान चलता रहता है —
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:  हृदय में काँपता विश्वास,<br>
 
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:  कि कितनी दूर है मधुमास ? <BR>
 
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पतझर बीच हलकी साँस ले मुरझा रही है ज़िन्दगी !<br>
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:(वाद्य-ध्वनि और धीमी-धीमी आवाज़ के साथ,<br> अब पास आते हुए नूपुरों की झनकार भी सुनायी देती है। युवक का स्वर कुछ धीमा पड़ जाता है,<br> पर गान का क्रम बिना टूटे चलता रहता है —
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:(वाद्य-ध्वनि और धीमी-धीमी आवाज़ के साथ, अब पास आते हुए नूपुरों की झनकार भी सुनायी देती है। युवक का स्वर कुछ धीमा पड़ जाता है, पर गान का क्रम बिना टूटे चलता रहता है —
  
 
:थकावट के नशे से चूर सारा तन,<br>
 
:थकावट के नशे से चूर सारा तन,<br>
:बड़ा दुर्बल,<br> बड़ा मजबूर,<br> हारा मन,<br>
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:  हृदय में रह गये अरमान,<br>
 
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:  कि कितनी दूर है मुसकान ? <BR>
 
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छाया हड्डियों की बन अकेली छा रही है ज़िन्दगी !<br>
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:(मंच पर एक दमकती हुई नारी - नयी  ज़िन्दगी की तसवीर बन कर नृत्य करती आती है ; जिसके तन पर रंगीन प्रकाश पड़ रहा है। युवक चकित होकर उसकी ओर देखता है,<br> उसका गान रुक जाता है। इसी समय पृष्ठभूमि का यह स्वर प्रखर हो उठता है —
 
:(मंच पर एक दमकती हुई नारी - नयी  ज़िन्दगी की तसवीर बन कर नृत्य करती आती है ; जिसके तन पर रंगीन प्रकाश पड़ रहा है। युवक चकित होकर उसकी ओर देखता है,<br> उसका गान रुक जाता है। इसी समय पृष्ठभूमि का यह स्वर प्रखर हो उठता है —
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भविष्यत् विश्व का नव-लक्ष्य सुन्दर है,<br>
 
भविष्यत् विश्व का नव-लक्ष्य सुन्दर है,<br>
 
मगर अभिनव दिशा का पथ न बेहतर है,<br>
 
मगर अभिनव दिशा का पथ न बेहतर है,<br>
: बिछे कंटक कठिन,<br> दुर्दम ;
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: बिछे कंटक कठिन, दुर्दम ;<br>
 
: क़दम पर गिर रहे हरदम,<br>
 
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कितनी आफ़तों को चीर हँसती आ रही है ज़िन्दगी !<br>
 
कितनी आफ़तों को चीर हँसती आ रही है ज़िन्दगी !<br>
गहरे इस अँधेरे में किरन बरसा रही है ज़िन्दगी !<br>
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गहरे इस अँधेरे में किरन बरसा रही है ज़िन्दगी !<br><br>
  
 
:(‘हँसती आ रही...’ शब्दों पर नारी का चेहरा मुसकान से भर जाता है। युवक पृष्ठभूमि के स्वरों को दोहराता हुआ ‘नयी ज़िन्दगी’ की ओर बढ़ता :है। उसके रुखे केश  हवा में उड़ने लगते हैं और ‘नयी ज़िन्दगी’ उसका हाथ  पकड़ लेती है। एक क्षण तक वाद्य-ध्वनि,<br> नूपुरों की झनकार और गीत के स्वर गूँजते रहते हैं।)
 
:(‘हँसती आ रही...’ शब्दों पर नारी का चेहरा मुसकान से भर जाता है। युवक पृष्ठभूमि के स्वरों को दोहराता हुआ ‘नयी ज़िन्दगी’ की ओर बढ़ता :है। उसके रुखे केश  हवा में उड़ने लगते हैं और ‘नयी ज़िन्दगी’ उसका हाथ  पकड़ लेती है। एक क्षण तक वाद्य-ध्वनि,<br> नूपुरों की झनकार और गीत के स्वर गूँजते रहते हैं।)

20:13, 18 अगस्त 2008 के समय का अवतरण

(रंगमंच पर एक युवक, जिसके जिसके रूखे केशों की लटें मुख के आस-पास गिरी हुई हैं, दर्द भरी आवाज़ में गाता है। मंच पर अँधेरा है, केवल युवक पर पीली-पीली रोशनी पड़ रही है। जैसे ही वह गान प्रारम्भ करता है, पर्दे के पीछे से हल्की-हल्की वाद्य-ध्वनि होती है; जो उसकी रागिनी से मेल खाती हुई है —

कितनी बेबसी के बीच गुज़री जा रही है ज़िन्दगी !

हमेशा एक-से दिन, एक-सी रातें,
वही जीवित अभावों की सड़ी बातें,
हृदय पर कर रहीं आघात,
कि कितनी दूर है बरसात ?

प्राणों का अधूरा गीत रह-रह गा रही है ज़िन्दगी !
कितनी बेबसी के बीच गुज़री जा रही है ज़िन्दगी !

वही सपने पुराने कर रहे हैं छल,
वही कंपन, वही धड़कन, वही हलचल,
हृदय पर कर रही अधिकार,
कि कितनी दूर नव-संसार ?

बारम्बार जीवन के वही क्षण पा रही है ज़िन्दगी !
कितनी बेबसी के बीच गुज़री जा रही है ज़िन्दगी !

(पर्दे के पीछे से वाद्य-ध्वनि ज़रा कुछ तेज़ हो जाती है और साथ में नारी-स्वर भी उसी लय में सुनायी देने लगता है जो अभी अस्पष्ट और धीमा है। युवक का गान चलता रहता है —
बड़ी सूखी हवाएँ आसमानों पर,
चलीं आवाज़ करतीं आशियानों पर,
हृदय में काँपता विश्वास,
कि कितनी दूर है मधुमास ?

पतझर बीच हलकी साँस ले मुरझा रही है ज़िन्दगी !
कितनी बेबसी के बीच गुज़री जा रही है ज़िन्दगी !

(वाद्य-ध्वनि और धीमी-धीमी आवाज़ के साथ, अब पास आते हुए नूपुरों की झनकार भी सुनायी देती है। युवक का स्वर कुछ धीमा पड़ जाता है, पर गान का क्रम बिना टूटे चलता रहता है —
थकावट के नशे से चूर सारा तन,
बड़ा दुर्बल, बड़ा मजबूर, हारा मन,
हृदय में रह गये अरमान,
कि कितनी दूर है मुसकान ?

छाया हड्डियों की बन अकेली छा रही है ज़िन्दगी !
कितनी बेबसी के बीच गुज़री जा रही है ज़िन्दगी !

(मंच पर एक दमकती हुई नारी - नयी ज़िन्दगी की तसवीर बन कर नृत्य करती आती है ; जिसके तन पर रंगीन प्रकाश पड़ रहा है। युवक चकित होकर उसकी ओर देखता है,
उसका गान रुक जाता है। इसी समय पृष्ठभूमि का यह स्वर प्रखर हो उठता है —

भविष्यत् विश्व का नव-लक्ष्य सुन्दर है,
मगर अभिनव दिशा का पथ न बेहतर है,

बिछे कंटक कठिन, दुर्दम ;
क़दम पर गिर रहे हरदम,

कितनी आफ़तों को चीर हँसती आ रही है ज़िन्दगी !
गहरे इस अँधेरे में किरन बरसा रही है ज़िन्दगी !

(‘हँसती आ रही...’ शब्दों पर नारी का चेहरा मुसकान से भर जाता है। युवक पृष्ठभूमि के स्वरों को दोहराता हुआ ‘नयी ज़िन्दगी’ की ओर बढ़ता :है। उसके रुखे केश हवा में उड़ने लगते हैं और ‘नयी ज़िन्दगी’ उसका हाथ पकड़ लेती है। एक क्षण तक वाद्य-ध्वनि,
नूपुरों की झनकार और गीत के स्वर गूँजते रहते हैं।)