भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आलिंगन तरसे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
मिलता कहाँ मन | मिलता कहाँ मन | ||
जग- निर्जन वन। | जग- निर्जन वन। | ||
+ | |||
</poem> | </poem> |
17:02, 2 दिसम्बर 2019 के समय का अवतरण
29
मन उन्मन
तरसे आलिंगन
कहाँ खो गए
अब चले भी आओ
परदेसी हो गए !!
30
आकर लौटे,
बन्द द्वार था मिला
भाग्य की बात,
दर्द मिले मुफ़्त में
प्यार माँगे न मिले।
31
टूटते कहाँ
लौहपाश जकड़े
मन व प्राण
मिलता कहाँ मन
जग- निर्जन वन।