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"क्यों नहीं / ऋतु पल्लवी" के अवतरणों में अंतर
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नीला आकाश ,सुनहरी धूप ,हरे खेत | नीला आकाश ,सुनहरी धूप ,हरे खेत | ||
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पीले पत्ते ही क्यों उपमान बनते हैं ! | पीले पत्ते ही क्यों उपमान बनते हैं ! | ||
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कभी बेरंग रेगिस्तान में क्यों | कभी बेरंग रेगिस्तान में क्यों | ||
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गुलाबी फूलों की बात नहीं होती ? | गुलाबी फूलों की बात नहीं होती ? | ||
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रूप की रोशनी ,तारों की रिमझिम, | रूप की रोशनी ,तारों की रिमझिम, | ||
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फूलों की शबनमी को ही क्यों सराहते हैं लोग! | फूलों की शबनमी को ही क्यों सराहते हैं लोग! | ||
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कभी अनमनी अमावस की रात में क्यों | कभी अनमनी अमावस की रात में क्यों | ||
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चाँद की चांदनी नहीं सजती ? | चाँद की चांदनी नहीं सजती ? | ||
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नेताओं के नारे ,पत्रकारों के व्यक्तव्य | नेताओं के नारे ,पत्रकारों के व्यक्तव्य | ||
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कवि के भवितव्य ही क्यों सजते हैं अखबारों में! | कवि के भवितव्य ही क्यों सजते हैं अखबारों में! | ||
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कभी आम आदमी की संवेदना का सम्पादन | कभी आम आदमी की संवेदना का सम्पादन | ||
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क्यों नहीं छपता इन प्रसारों में ? | क्यों नहीं छपता इन प्रसारों में ? | ||
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मैं तुम्हें प्रेम भरी पाती ,संवेदनशील कविता,सन्देश,आवेश | मैं तुम्हें प्रेम भरी पाती ,संवेदनशील कविता,सन्देश,आवेश | ||
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या आक्रोश कुछ भी न भेजूं! | या आक्रोश कुछ भी न भेजूं! | ||
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फिर भी मुखरित हो जाए मेरी हर बात | फिर भी मुखरित हो जाए मेरी हर बात | ||
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कभी क्यों नहीं होता ऐसा शब्दों पर,मौन का आघात..? | कभी क्यों नहीं होता ऐसा शब्दों पर,मौन का आघात..? | ||
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19:37, 24 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
नीला आकाश ,सुनहरी धूप ,हरे खेत
पीले पत्ते ही क्यों उपमान बनते हैं !
कभी बेरंग रेगिस्तान में क्यों
गुलाबी फूलों की बात नहीं होती ?
रूप की रोशनी ,तारों की रिमझिम,
फूलों की शबनमी को ही क्यों सराहते हैं लोग!
कभी अनमनी अमावस की रात में क्यों
चाँद की चांदनी नहीं सजती ?
नेताओं के नारे ,पत्रकारों के व्यक्तव्य
कवि के भवितव्य ही क्यों सजते हैं अखबारों में!
कभी आम आदमी की संवेदना का सम्पादन
क्यों नहीं छपता इन प्रसारों में ?
मैं तुम्हें प्रेम भरी पाती ,संवेदनशील कविता,सन्देश,आवेश
या आक्रोश कुछ भी न भेजूं!
फिर भी मुखरित हो जाए मेरी हर बात
कभी क्यों नहीं होता ऐसा शब्दों पर,मौन का आघात..?