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"सोचता जब तक / प्रताप नारायण सिंह" के अवतरणों में अंतर
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सिहारूँ नेह-जल अंतह-कलश में | सिहारूँ नेह-जल अंतह-कलश में | ||
मेघ मुझको छल चुके थे | मेघ मुझको छल चुके थे | ||
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उल्लसित प्रस्तावना देखी, मधुर विस्तार देखा | उल्लसित प्रस्तावना देखी, मधुर विस्तार देखा | ||
अंततः निर्वात से भी रिक्त उपसंहार देखा | अंततः निर्वात से भी रिक्त उपसंहार देखा | ||
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सोचता जब तक | सोचता जब तक | ||
उतारूँ प्रणय-गाथा पुस्तिका पर | उतारूँ प्रणय-गाथा पुस्तिका पर | ||
पृष्ठ सारे गल चुके थे | पृष्ठ सारे गल चुके थे | ||
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गूँथ कर हिय-मृत्तिका को भावना-जल से, गढ़ा था | गूँथ कर हिय-मृत्तिका को भावना-जल से, गढ़ा था | ||
रंग उस पर इन्द्रधनु जैसा समर्पण का चढ़ा था | रंग उस पर इन्द्रधनु जैसा समर्पण का चढ़ा था | ||
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सोचता जब तक | सोचता जब तक | ||
निहारूँ प्रीति की प्रतिमूर्ति कोमल | निहारूँ प्रीति की प्रतिमूर्ति कोमल | ||
देव द्युति के ढल चुके थे | देव द्युति के ढल चुके थे | ||
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स्वर लहरियाँ धड़कनों की उर-सदन में गूँजती थीं | स्वर लहरियाँ धड़कनों की उर-सदन में गूँजती थीं | ||
कोयलें उल्लास की आठों प्रहर ही कूजती थीं | कोयलें उल्लास की आठों प्रहर ही कूजती थीं | ||
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सोचता जब तक | सोचता जब तक | ||
सँवारुँ रूप अपने गीत का मैं | सँवारुँ रूप अपने गीत का मैं | ||
बोल सारे जल चुके थे | बोल सारे जल चुके थे | ||
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01:44, 7 नवम्बर 2019 के समय का अवतरण
सोचता जब तक,
सिहारूँ नेह-जल अंतह-कलश में
मेघ मुझको छल चुके थे
उल्लसित प्रस्तावना देखी, मधुर विस्तार देखा
अंततः निर्वात से भी रिक्त उपसंहार देखा
सोचता जब तक
उतारूँ प्रणय-गाथा पुस्तिका पर
पृष्ठ सारे गल चुके थे
गूँथ कर हिय-मृत्तिका को भावना-जल से, गढ़ा था
रंग उस पर इन्द्रधनु जैसा समर्पण का चढ़ा था
सोचता जब तक
निहारूँ प्रीति की प्रतिमूर्ति कोमल
देव द्युति के ढल चुके थे
स्वर लहरियाँ धड़कनों की उर-सदन में गूँजती थीं
कोयलें उल्लास की आठों प्रहर ही कूजती थीं
सोचता जब तक
सँवारुँ रूप अपने गीत का मैं
बोल सारे जल चुके थे