"जंगल क़ैद / कुमार विकल" के अवतरणों में अंतर
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− | आख़िर वे जंगल को चले | + | आख़िर वे जंगल को चले गए |
और अभी तक लौट कर नहीं आए | और अभी तक लौट कर नहीं आए | ||
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मगर जंगल जब जेल में बदल जाता है | मगर जंगल जब जेल में बदल जाता है | ||
− | तो सवारों की तरह घोड़े भी | + | तो सवारों की तरह घोड़े भी नहीं लौटते |
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सुनो, ज़रा सुनो | सुनो, ज़रा सुनो | ||
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कोई कविता गुनगुना रहा है | कोई कविता गुनगुना रहा है | ||
− | नहीं, कोई कविता सिसक रहा | + | नहीं, कोई कविता सिसक रहा है। |
यह सिसकी आवाज़ में है | यह सिसकी आवाज़ में है | ||
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यह सिसकी एक क़द्दावर स्वस्थ आदमी के शरीर की | यह सिसकी एक क़द्दावर स्वस्थ आदमी के शरीर की | ||
− | नींद के लिए छोटी—सी प्रार्थना | + | नींद के लिए छोटी—सी प्रार्थना है। |
किंतु जंगलों में प्रार्थनाएँ कौन सुनता है | किंतु जंगलों में प्रार्थनाएँ कौन सुनता है | ||
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सिसकियाँ बन लौट आती हैं | सिसकियाँ बन लौट आती हैं | ||
− | हम उन सिसकियों से भाग कर कहाँ | + | हम उन सिसकियों से भाग कर कहाँ जाएँ। |
अपने घरों की खिड़कियाँ बंद कर लें | अपने घरों की खिड़कियाँ बंद कर लें | ||
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अपनी पत्नी और बच्चों के साथ | अपनी पत्नी और बच्चों के साथ | ||
− | सुरक्षित बिस्तरों में दुबक जाएँ ! | + | सुरक्षित बिस्तरों में दुबक जाएँ! |
हम उनके लिए कुछ नहीं कर सकते | हम उनके लिए कुछ नहीं कर सकते | ||
− | केवल तकियों के नीचे मुँह रखकर सो सकते | + | केवल तकियों के नीचे मुँह रखकर सो सकते हैं। |
आख़िर हम उन्हें सिवान पर क्यों छोड़ आए | आख़िर हम उन्हें सिवान पर क्यों छोड़ आए | ||
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अकेले घरों | अकेले घरों | ||
− | को लौट आए | + | को लौट आए? |
10:06, 26 अगस्त 2008 के समय का अवतरण
आख़िर वे जंगल को चले गए
और अभी तक लौट कर नहीं आए
हम उन के लिए क्या कर सकते हैं !
केवल उनकी कविताएँ बंद कमरों में पढ़कर रो लेते हैं
और उनके ख़ाली घोड़ों के लौटने का इंतज़ार करते हैं
मगर जंगल जब जेल में बदल जाता है
तो सवारों की तरह घोड़े भी नहीं लौटते
केवल कुछ टापों की आवाज़ें लौट आती हैं।
हम उन टापों की आवाज़ों से भाग कर कहाँ जाएँ
‘हम’ जो उन्हें सिवान तक पहुँचाने गये थे लालटेन लेकर
सुनो, ज़रा सुनो
अंधेरे में टापों की आवाज़ों में सुनो
कोई कविता गुनगुना रहा है
नहीं, कोई कविता सिसक रहा है।
यह सिसकी आवाज़ में है
इस कविता की कौन—सी भाषा है
यह तो आदमी के शरीर पर अत्याचार की लिपि में लिखी हुई भाषा है
यह सिसकी एक क़द्दावर स्वस्थ आदमी के शरीर की
नींद के लिए छोटी—सी प्रार्थना है।
किंतु जंगलों में प्रार्थनाएँ कौन सुनता है
इसलिए वे टापॊं की आवाज़ों के साथ
सिसकियाँ बन लौट आती हैं
हम उन सिसकियों से भाग कर कहाँ जाएँ।
अपने घरों की खिड़कियाँ बंद कर लें
अपने कानों में सीसा भर लें
अपनी पत्नी और बच्चों के साथ
सुरक्षित बिस्तरों में दुबक जाएँ!
हम उनके लिए कुछ नहीं कर सकते
केवल तकियों के नीचे मुँह रखकर सो सकते हैं।
आख़िर हम उन्हें सिवान पर क्यों छोड़ आए
और ख़ुद अपनी लालटेनों के साथ
अकेले घरों
को लौट आए?