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"उमीदे-मर्ग कब तक / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर
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न याद आयें ग़रीबों को तेरे दीवारो-दर कब तक | न याद आयें ग़रीबों को तेरे दीवारो-दर कब तक | ||
− | + | यूँ तदबीरें भी तक़दीरे- महब्बत बन नहीं सकतीं | |
किसी को हिज्र में भूलें रहेंगे हम मगर कब तक | किसी को हिज्र में भूलें रहेंगे हम मगर कब तक | ||
− | इनायत<ref>कृपा</ref> की करम की लुत्फ़ की | + | इनायत<ref>कृपा</ref> की करम की लुत्फ़ की आख़िर कोई हद है |
− | आख़िर कोई हद है | + | |
कोई करता रहेगा चारा-ए-जख़्मे ज़िगर<ref>जिगर के घाव का उपचार</ref> कब तक | कोई करता रहेगा चारा-ए-जख़्मे ज़िगर<ref>जिगर के घाव का उपचार</ref> कब तक | ||
− | किसी का | + | किसी का हुस्न रुसवा हो गया पर्दे ही पर्दे में |
न लाये रंग आख़िरकार तासीरे-नज़र कब तक | न लाये रंग आख़िरकार तासीरे-नज़र कब तक | ||
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22:38, 24 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण
उमीदे-मर्ग कब तक ज़िन्दगी का दर्दे-सर कब तक
ये माना सब्र करते हैं महब्बत में मगर कब तक
दयारे दोस्त हद होती है यूँ भी दिल बहलने की
न याद आयें ग़रीबों को तेरे दीवारो-दर कब तक
यूँ तदबीरें भी तक़दीरे- महब्बत बन नहीं सकतीं
किसी को हिज्र में भूलें रहेंगे हम मगर कब तक
इनायत<ref>कृपा</ref> की करम की लुत्फ़ की आख़िर कोई हद है
कोई करता रहेगा चारा-ए-जख़्मे ज़िगर<ref>जिगर के घाव का उपचार</ref> कब तक
किसी का हुस्न रुसवा हो गया पर्दे ही पर्दे में
न लाये रंग आख़िरकार तासीरे-नज़र कब तक
शब्दार्थ
<references/>