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"तुम बिन यह मौसम / रवीन्द्र भ्रमर" के अवतरणों में अंतर
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02:31, 29 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण
तुम बिन !
यह मौसम कितना उदास लगता है —
तुम बिन !
घर पीछे तालाब
उगे हैं लाल कमल के ढेर
तुम आँखों में उग आई हो
प्रात गन्ध की बेर;
यह मौसम कितना उदास लगता है —
तुम बिन !
झर-झर हरसिंगार झरते हैं
पवन पुलक के भार
हार गूँथ लूँ, किन्तु
करूँ किस वेणी का शृँगार;
यह मौसम कितना उदास लगता है —
तुम बिन !
नई हवा की छुवन
बोल पंछी के नए नए
सब कुरदते याद तुम्हारी
मन पर सब उनये;
यह मौसम कितना उदास लगता है —
तुम बिन !