"सिसकी,प्यास-- / सुधा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
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हज़ार बार । | हज़ार बार । | ||
ख़ुद पर करती प्रहार- | ख़ुद पर करती प्रहार- | ||
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अक्सर हमारी सारी ज़िन्दगी | अक्सर हमारी सारी ज़िन्दगी | ||
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पर कुछ याद नहीं आता । | पर कुछ याद नहीं आता । | ||
− | एक अँधेरी सुरंग से गुज़र रही | + | एक अँधेरी सुरंग से गुज़र रही हूँ |
जाने कब से ! | जाने कब से ! | ||
गुज़रूँगी | गुज़रूँगी |
10:55, 7 जून 2020 के समय का अवतरण
1-सिसकी
बहुत देर रो-रोकर
हलकान हो-होकर
सो जाए कोई बच्चा काँधे लगकर
तो
नींद में जैसे बार-बार
उसे सिसकी आती है
ऐसे
मुझे तेरी याद आती है
बहुत देर रो-रोकर
हलकान हो-होकर ।
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2-प्यास
एक दिन भी
अपनी मर्ज़ी का न जिया
एक मैं ही रही प्यासी
और सबने
भर-भर प्याला
छककर पिया।
होगा किसी मुट्ठी में चाँद
किसी में सूरज,
मैंने तो
साँस-साँस
बस
ज़िन्दगी का कर्ज़
चुकता किया।
एक दिन भी
अपनी मर्ज़ी का न जिया।
-0-
3-लड़ाई
शीशे पर
आती है गौरैया
बार-बार
मारती है चोंच
एक बार-दस बार-सौ बार
हज़ार बार ।
ख़ुद पर करती प्रहार-
ख़ुद से होती घायल गौरैया
अक्सर हमारी सारी ज़िन्दगी
खुद से लड़ते , चोट खाते बीतती है।
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4-अँधेरी सुरंग
कितने दिन हुए
तुमसे
बिछुड़े
कितने हफ़्ते-महीने -बरस ?
सोचती हूँ
पर कुछ याद नहीं आता ।
एक अँधेरी सुरंग से गुज़र रही हूँ
जाने कब से !
गुज़रूँगी
जाने कब तक !!
कहीं
रोशनी की एऽऽऽक लकीर नहीं !
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