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"उगता सूर्य / प्रियंका गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

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घास बन के जिए ।
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मैंने था मारा
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फिर झाँका तो पाया
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रावण मरा नहीं ।
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फिर नई ऊर्जा ले
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रौशनी लुटाएगा ।
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हरसिंगार
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झरे मुस्काते हुए
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थे इसी वास्ते
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खुशबू फैला गए
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किसी काम आ गए ।
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तूने ही मुझे
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मुझसे मिलवाया
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जीना सिखाया;
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दुनिया से हार क्यूँ
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खुद हुआ पराया ?
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चेहरे पे मुस्कान
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देख के जाने
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दिल का सब हाल
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दोस्त की पहचान ।
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हिसाब रखो
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खुशी भरे पलों का
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दुःखों का नहीं
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अँधेरों से ज्यादा
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रौशनी भली लगे ।
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कितने काटे
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घने दरख़्त, वन
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रहने भी दो
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ज़मीं पे घास ही को -
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हरियाली का भ्रम ।
  
  
 
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20:13, 13 जून 2020 के समय का अवतरण

10
जब भी दर्द
हद से गुजरता
और न सहे
मन चीत्कार करे
कोई सुने, न सुने ।
11
ठोकर लगे
अपनों की बेरुखी
मन को डसे
फिर भी चुप सहे
घास बन के जिए ।
12
मैंने था मारा
भीतर का रावण
पिछली बार ;
फिर झाँका तो पाया
रावण मरा नहीं ।
13
उगता सूर्य
जानता है नियति
डूब जाएगा;
फिर नई ऊर्जा ले
रौशनी लुटाएगा ।
14
हरसिंगार
झरे मुस्काते हुए
थे इसी वास्ते
खुशबू फैला गए
किसी काम आ गए ।
15
तूने ही मुझे
मुझसे मिलवाया
जीना सिखाया;
दुनिया से हार क्यूँ
खुद हुआ पराया ?
16
आँखों में नमी
चेहरे पे मुस्कान
देख के जाने
दिल का सब हाल
दोस्त की पहचान ।
17
हिसाब रखो
खुशी भरे पलों का
दुःखों का नहीं
अँधेरों से ज्यादा
रौशनी भली लगे ।
18
कितने काटे
घने दरख़्त, वन
रहने भी दो
ज़मीं पे घास ही को -
हरियाली का भ्रम ।