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+ | घास बन के जिए । | ||
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+ | मैंने था मारा | ||
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+ | पिछली बार ; | ||
+ | फिर झाँका तो पाया | ||
+ | रावण मरा नहीं । | ||
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+ | जानता है नियति | ||
+ | डूब जाएगा; | ||
+ | फिर नई ऊर्जा ले | ||
+ | रौशनी लुटाएगा । | ||
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+ | हरसिंगार | ||
+ | झरे मुस्काते हुए | ||
+ | थे इसी वास्ते | ||
+ | खुशबू फैला गए | ||
+ | किसी काम आ गए । | ||
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+ | तूने ही मुझे | ||
+ | मुझसे मिलवाया | ||
+ | जीना सिखाया; | ||
+ | दुनिया से हार क्यूँ | ||
+ | खुद हुआ पराया ? | ||
+ | 16 | ||
+ | आँखों में नमी | ||
+ | चेहरे पे मुस्कान | ||
+ | देख के जाने | ||
+ | दिल का सब हाल | ||
+ | दोस्त की पहचान । | ||
+ | 17 | ||
+ | हिसाब रखो | ||
+ | खुशी भरे पलों का | ||
+ | दुःखों का नहीं | ||
+ | अँधेरों से ज्यादा | ||
+ | रौशनी भली लगे । | ||
+ | 18 | ||
+ | कितने काटे | ||
+ | घने दरख़्त, वन | ||
+ | रहने भी दो | ||
+ | ज़मीं पे घास ही को - | ||
+ | हरियाली का भ्रम । | ||
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20:13, 13 जून 2020 के समय का अवतरण
10
जब भी दर्द
हद से गुजरता
और न सहे
मन चीत्कार करे
कोई सुने, न सुने ।
11
ठोकर लगे
अपनों की बेरुखी
मन को डसे
फिर भी चुप सहे
घास बन के जिए ।
12
मैंने था मारा
भीतर का रावण
पिछली बार ;
फिर झाँका तो पाया
रावण मरा नहीं ।
13
उगता सूर्य
जानता है नियति
डूब जाएगा;
फिर नई ऊर्जा ले
रौशनी लुटाएगा ।
14
हरसिंगार
झरे मुस्काते हुए
थे इसी वास्ते
खुशबू फैला गए
किसी काम आ गए ।
15
तूने ही मुझे
मुझसे मिलवाया
जीना सिखाया;
दुनिया से हार क्यूँ
खुद हुआ पराया ?
16
आँखों में नमी
चेहरे पे मुस्कान
देख के जाने
दिल का सब हाल
दोस्त की पहचान ।
17
हिसाब रखो
खुशी भरे पलों का
दुःखों का नहीं
अँधेरों से ज्यादा
रौशनी भली लगे ।
18
कितने काटे
घने दरख़्त, वन
रहने भी दो
ज़मीं पे घास ही को -
हरियाली का भ्रम ।