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* [[नरक हो गई है ससुराल में ज़िन्दगी मेरी / हब्बा ख़ातून / सुरेश सलिल]] | * [[नरक हो गई है ससुराल में ज़िन्दगी मेरी / हब्बा ख़ातून / सुरेश सलिल]] | ||
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+ | * [[मैं तड़पती हूँ उसके लिए / हब्बा ख़ातून / शाहिद अंसारी]] |
15:51, 21 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
हब्बा ख़ातून
जन्म | 1552 |
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निधन | 1605 |
जन्म स्थान | ग्राम चन्धारा, कश्मीर |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
वे मीरा और अकबर की समकालीन थीं ।उनका कण्ठ-स्वर बहुत सुरीला थाऔर उनके गीतों में प्रेम के मिलन और विरह, दोनों पक्षों तथा स्त्री जीवन की विडम्बना का स्वर प्रमुख हैं। इन्हें कश्मीरी साहित्य में ’बुलबुले-कश्मीर’ के नाम से याद किया जाता है। | |
जीवन परिचय | |
हब्बा ख़ातून / परिचय |
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
- किसे पता था भला / हब्बा ख़ातून / सुरेश सलिल
- इस तरह न गुम हों बचपन के दिन / हब्बा ख़ातून / सुरेश सलिल
- नरक हो गई है ससुराल में ज़िन्दगी मेरी / हब्बा ख़ातून / सुरेश सलिल
- मैंने रास्ते में सारे दिन खो दिए / हब्बा ख़ातून / शाहिद अंसारी
- मैं घर से खेलने निकली / हब्बा ख़ातून / शाहिद अंसारी
- मैं तड़पती हूँ उसके लिए / हब्बा ख़ातून / शाहिद अंसारी