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मैं घर से खेलने निकली / हब्बा ख़ातून / शाहिद अंसारी
Kavita Kosh से
मैं घर से खेलने निकली और उसमें खो गई,
तब तक दिन पश्चिम में डूब गया ।
मैं एक ऊँचे घराने से आती हूँ,
जिसने मुझे दिया सम्मान और नाम,
कई सारे आशिक़ मेरे ऊपर लट्टू हुए,
तब तक दिन पश्चिम में डूब गया ।
जब तक मैं घर में थी, मैं दुनिया की नज़रों से दूर थी,
एक बार जब बाहर निकली, सबकी ज़बान पर था मेरा नाम,
साधुओं ने मुझे देखने की चाहत में,
अपनी सधुक्कड़ी जंगल में छोड़ दी ।
जब तक मेरी दुकान सामान से भरी थी,
तब तक पूरी दुनिया उसे देखने को बेताब थी,
जैसे ही मेरी अनमोल धरोहर सबके सामने आई,
उसका भाव गिर गया,
तब तक दिन पश्चिम में डूब गया ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : शाहिद अंसारी