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"अम्मा / शिवजी श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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अम्मा सपने में आईं थीं
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उनके पीछे
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उड़ती उड़ती
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रंग बिरंगे पंखो वाली
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लिए हाथ
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जादू की छड़ियाँ
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ढेरों परियाँ भी आईं थीं।
  
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अम्मा बैठ गईं खटिया पर
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मेरा सर गोदी में रख कर
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अम्मा किस्से लगीं बाँचने
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और उसी क्षण मेरे सर पर
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घुमा घुमा जादू की छड़ियाँ
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परियाँ सारी लगीं नाचने
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घड़ी उम्र की उल्टी चल दी
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मैं बन गया जरा सा बच्चा
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भोला सा मासूम बहुत ही
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बिलकुल सीधा बिलकुल सच्चा
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अम्मा मुझको रहीं देखतीं
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फिर होंठों होंठों में बोलीं
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मुन्ना  क्या चिंता है तुझको
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देह हुई क्यों पीली पीली
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चेहरा ऐसा कुम्हलाया  है
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जैसे सूखी हुई निबौली
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नज़र लगी है तुझको शायद
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या कुछ टोना किया गया है
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किसी बुरी साया ने आकर
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तेरा सारा खून पिया है
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ठहर अभी बस पल भर में ही
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सारा टोना झाडूंगी मैं
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तेरी नजर उतारूँगी मैं
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अला बला सब टालूँगी मैं
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कहते कहते अम्मा ने झट
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खोल लिया आँचल का कोना,
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आँचल के खूँटे में अम्मा
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राई - नोन बाँध लाईं थीं।
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पीड़ाओं का घना हिमालय
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जमा हुआ बरसों से दिल  मे
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नेह ताप अम्मा का पाकर
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लगा अचानक आज पिघलने
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बन धारा गंगा जमुना की
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नयनो में से लगा उतरने
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मैं रोया जी भर कर रोया
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गला रुँधा हिचकी भी आई
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अम्मा ने थोड़ा दुलराया
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फिर मीठी  सी डांट लगाईं
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अम्मा बोलीं
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सुन रे मुन्ना ,
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जब भी समय बुरा आता है
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गैरों की  क्या बात
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स्वयम का साया साथ छोड़ जाता है
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रोने धोने से  ओ बेटा
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प्रश्न न कोई हल होता है ,
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संघर्षो के मारग में तो
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धीरज ही संबल होता है
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चाहे कितनी कठिन डगर हो
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तुम बस आगे बढ़ते जाना
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छाले पाँवों में असंख्य हों
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नैनों में आँसू मत लाना।
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बहुत हो गया रोना धोना
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चल बेटा मैं तुझे सुलाऊँ
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तेरे सर पर चम्पी कर दूँ ,
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नई लोरियाँ तुझे सुनाऊँ
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अम्मा लोरी लगीं सुनाने,
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परियाँ जादू लगीं दिखाने
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मीठे सपनों में मैं खोया
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गहरी नींद बहुत मैं सोया,
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बाद मुद्दतों के मुझको
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इतनी भली नींद आई थी.
  
 
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09:13, 2 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

अम्मा सपने में आईं थीं
उनके पीछे
उड़ती उड़ती
रंग बिरंगे पंखो वाली
लिए हाथ
जादू की छड़ियाँ
ढेरों परियाँ भी आईं थीं।

अम्मा बैठ गईं खटिया पर
मेरा सर गोदी में रख कर
अम्मा किस्से लगीं बाँचने
और उसी क्षण मेरे सर पर
घुमा घुमा जादू की छड़ियाँ
परियाँ सारी लगीं नाचने
घड़ी उम्र की उल्टी चल दी
मैं बन गया जरा सा बच्चा
भोला सा मासूम बहुत ही
बिलकुल सीधा बिलकुल सच्चा
अम्मा मुझको रहीं देखतीं
फिर होंठों होंठों में बोलीं
मुन्ना क्या चिंता है तुझको
देह हुई क्यों पीली पीली
चेहरा ऐसा कुम्हलाया है
जैसे सूखी हुई निबौली

नज़र लगी है तुझको शायद
या कुछ टोना किया गया है
किसी बुरी साया ने आकर
तेरा सारा खून पिया है
ठहर अभी बस पल भर में ही
सारा टोना झाडूंगी मैं
तेरी नजर उतारूँगी मैं
अला बला सब टालूँगी मैं
 कहते कहते अम्मा ने झट
खोल लिया आँचल का कोना,
आँचल के खूँटे में अम्मा
राई - नोन बाँध लाईं थीं।

पीड़ाओं का घना हिमालय
जमा हुआ बरसों से दिल मे
नेह ताप अम्मा का पाकर
लगा अचानक आज पिघलने
बन धारा गंगा जमुना की
नयनो में से लगा उतरने
 मैं रोया जी भर कर रोया
गला रुँधा हिचकी भी आई
अम्मा ने थोड़ा दुलराया
फिर मीठी सी डांट लगाईं
अम्मा बोलीं
सुन रे मुन्ना ,
जब भी समय बुरा आता है
गैरों की क्या बात
स्वयम का साया साथ छोड़ जाता है
रोने धोने से ओ बेटा
प्रश्न न कोई हल होता है ,
संघर्षो के मारग में तो
धीरज ही संबल होता है
चाहे कितनी कठिन डगर हो
तुम बस आगे बढ़ते जाना
छाले पाँवों में असंख्य हों
नैनों में आँसू मत लाना।

बहुत हो गया रोना धोना
चल बेटा मैं तुझे सुलाऊँ
तेरे सर पर चम्पी कर दूँ ,
नई लोरियाँ तुझे सुनाऊँ
अम्मा लोरी लगीं सुनाने,
परियाँ जादू लगीं दिखाने
मीठे सपनों में मैं खोया
गहरी नींद बहुत मैं सोया,
बाद मुद्दतों के मुझको
इतनी भली नींद आई थी.