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"मैं शीशम का वृक्ष / शिवजी श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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+ | मैं अल्हड़ अलमस्त फकीर। | ||
+ | मैं हूँ मीत धरा का साथी, | ||
+ | लग न कभी पाया गमलो में | ||
+ | राह किनारे खड़ा मिलूँगा | ||
+ | वास नही भवनों, महलों में | ||
+ | भीषण झंझा,गर्जन तर्जन | ||
+ | विचलित मुझे न कर पाते हैं | ||
+ | ऋतुओं के हर क्रम-व्यतिक्रम में | ||
+ | मैं लिखता अपनी तकदीर | ||
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+ | ज्ञानी विज्ञानी बतलाते | ||
+ | कितना वंश पुराना मेरा | ||
+ | वाल्मीकि तुलसी से पूछो | ||
+ | प्रियवर पता ठिकाना मेरा | ||
+ | श्रृंगबेरपुर से सुन लेना | ||
+ | गाथायें मेरे पुरखों की | ||
+ | जिनकी शुभ शीतल छाया में | ||
+ | बैठे बनवासी रघुवीर। | ||
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+ | सभी सुखी हों सभी निरामय | ||
+ | यही पाठ पढ़ता रहता हूँ | ||
+ | जन जन की पीड़ा हरने को, | ||
+ | हँस कर सारे दुःख सहता हूँ | ||
+ | मैंने सिर्फ लुटाना सीखा | ||
+ | माँगा नहीं किसी से कुछ भी | ||
+ | परमारथ है धरम हमारा | ||
+ | यही सिखा कर गये कबीर | ||
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09:14, 2 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
मैं शीशम का वृक्ष ,बन्धुवर
मैं अल्हड़ अलमस्त फकीर।
मैं हूँ मीत धरा का साथी,
लग न कभी पाया गमलो में
राह किनारे खड़ा मिलूँगा
वास नही भवनों, महलों में
भीषण झंझा,गर्जन तर्जन
विचलित मुझे न कर पाते हैं
ऋतुओं के हर क्रम-व्यतिक्रम में
मैं लिखता अपनी तकदीर
ज्ञानी विज्ञानी बतलाते
कितना वंश पुराना मेरा
वाल्मीकि तुलसी से पूछो
प्रियवर पता ठिकाना मेरा
श्रृंगबेरपुर से सुन लेना
गाथायें मेरे पुरखों की
जिनकी शुभ शीतल छाया में
बैठे बनवासी रघुवीर।
सभी सुखी हों सभी निरामय
यही पाठ पढ़ता रहता हूँ
जन जन की पीड़ा हरने को,
हँस कर सारे दुःख सहता हूँ
मैंने सिर्फ लुटाना सीखा
माँगा नहीं किसी से कुछ भी
परमारथ है धरम हमारा
यही सिखा कर गये कबीर