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"देखा नहीं उसने पलटकर / अशोक शाह" के अवतरणों में अंतर

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क्यों रहता बैचेन समन्दर
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तोड़ती सहर में बदलकर
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मेरे चेहरे पर जड़ गया ताला
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कई दिनों से देखा नहीं उसने पलटकर
  
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बहते अश्कों का सुकून लिए वह
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चली गयी मेरे गीतों के हर्फ़ बदलकर
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ग़मगीन दिनों का दर्द वह भुला न पायी
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आजमाया उसने है खुद को कई शहर बदलकर
  
 
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21:59, 7 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

वह आती सुबह की धूप की तरह
हल्के कदम रखकर
वक़्त गुजरता ज़िन्दगी का
मुसलसल पहर बदलकर
क्यों रहता बैचेन समन्दर
चीखता हर लहर बदल कर

उदास रात की ख़ामोशी को
तोड़ती सहर में बदलकर
मेरे चेहरे पर जड़ गया ताला
कई दिनों से देखा नहीं उसने पलटकर

बहते अश्कों का सुकून लिए वह
चली गयी मेरे गीतों के हर्फ़ बदलकर
ग़मगीन दिनों का दर्द वह भुला न पायी
आजमाया उसने है खुद को कई शहर बदलकर

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