भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पुराने अध्यापक / रघुवंश मणि" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रघुवंश मणि }} अध्यापकों से हाथ मिलाते समय अनिश्...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=रघुवंश मणि | |रचनाकार=रघुवंश मणि | ||
}} | }} | ||
− | + | <poem> | |
अध्यापकों से हाथ मिलाते समय | अध्यापकों से हाथ मिलाते समय | ||
− | |||
अनिश्चय-सा छा जाता है | अनिश्चय-सा छा जाता है | ||
− | |||
एकाएक हिल जाता है मन | एकाएक हिल जाता है मन | ||
− | |||
सिर ऊँचा नहीं हो पाता | सिर ऊँचा नहीं हो पाता | ||
− | |||
अपने बढ़ने के अहसास पर भी | अपने बढ़ने के अहसास पर भी | ||
− | |||
कद में हम बढ़ जाते हैं | कद में हम बढ़ जाते हैं | ||
− | |||
झुक जाती है उनकी कमर | झुक जाती है उनकी कमर | ||
− | |||
शब्द सिखाने वाले अध्यापक | शब्द सिखाने वाले अध्यापक | ||
− | |||
अध्यापक कहानी सुनाने वाले | अध्यापक कहानी सुनाने वाले | ||
− | |||
मुर्गा बनाने वाले अध्यापक | मुर्गा बनाने वाले अध्यापक | ||
− | |||
उनके बढ़े हुए हाथ | उनके बढ़े हुए हाथ | ||
− | |||
जब अन्दर तक चले जाते हैं | जब अन्दर तक चले जाते हैं | ||
− | |||
सुबह की घंटियाँ बजाते | सुबह की घंटियाँ बजाते | ||
− | |||
बरबस झुकने को मन करता है | बरबस झुकने को मन करता है | ||
− | |||
जब एकाएक हाथ बढ़ा देते हैं पुराने अध्यापक | जब एकाएक हाथ बढ़ा देते हैं पुराने अध्यापक | ||
+ | </poem> |
22:43, 16 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
अध्यापकों से हाथ मिलाते समय
अनिश्चय-सा छा जाता है
एकाएक हिल जाता है मन
सिर ऊँचा नहीं हो पाता
अपने बढ़ने के अहसास पर भी
कद में हम बढ़ जाते हैं
झुक जाती है उनकी कमर
शब्द सिखाने वाले अध्यापक
अध्यापक कहानी सुनाने वाले
मुर्गा बनाने वाले अध्यापक
उनके बढ़े हुए हाथ
जब अन्दर तक चले जाते हैं
सुबह की घंटियाँ बजाते
बरबस झुकने को मन करता है
जब एकाएक हाथ बढ़ा देते हैं पुराने अध्यापक